Skandapurāṇa Adhyāya 72 E-text generated on February 11, 2019 from the original TeX files of: Peter C. Bisschop and Yuko Yokochi, eds. The Skandapurāṇa. Vol. IV. Start of the Skanda and Andhaka Cycles. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis, in cooperation with Diwakar Acharya and Judit Törzsök. Leiden/Boston: Brill, 2018. SP0720010: व्यास उवाच| SP0720011: भगवन्सर्वयोगज्ञ श्रुतमाख्यानमुत्तमम्| SP0720012: परतः श्रोतुमिच्छामि यद्वृत्तं मुनिसत्तम|| १|| SP0720021: अपनीय तदा विष्णोः सिंहरूपं वृषध्वजः| SP0720022: किमन्यदकरोद्धीमानेतदिच्छामि वेदितुम्|| २|| SP0720030: सनत्कुमार उवाच| SP0720031: स्वयोनिं विष्णुमानीय देवदेवो भवस्तदा| SP0720032: मन्दरे सहितो देव्या विचचार महाद्युतिः|| ३|| SP0720041: रम्यान्स काननोद्देशान्गिरेः प्रस्रवणानि च| SP0720042: अलंचकार देवेशः परिसर्पन्समन्ततः|| ४|| SP0720051: वनप्रेक्षारतिं देवं ज्ञात्वा शंकरमव्ययम्| SP0720052: शरत्तत्र वसन्तश्च द्वावृतू समुपस्थितौ|| ५|| SP0720061: ततो महीरुहाः सर्वे सरांसि च समन्ततः| SP0720062: नानाविधानि पुष्पाणि मुमुचुः सहसा समम्|| ६|| SP0720071: कमलोत्पलसंछन्नाः षट्पदव्रातसेविताः| SP0720072: हंससारससंवासा वाप्यस्तत्र मनोहराः|| ७|| SP0720081: गन्धाढ्या जातयः क्षिप्रं बभूवुः सह चम्पकैः| SP0720082: अशोको गन्धपुष्पश्च तथा चैवातिमुक्तकः| SP0720083: उपतस्थुः समं देवं सर्वगन्धसुखानिलाः|| ८|| SP0720091: सर्वर्तुकुसुमाकीर्णं दृष्ट्वा तद्वनमुत्तमम्| SP0720092: पुष्पाण्यादाय देवेशः स्वयमेव जगत्पतिः|| ९|| SP0720101: अलंचकार हृष्टात्मा देवीं हिमगिरेः सुताम्| SP0720102: नन्दीश्वरं च पार्श्वस्थमात्मानं च सुरेश्वरः|| १०|| SP0720111: ततः प्रणम्य देवेशं पार्वती प्रणयादिदम्| SP0720112: वचः प्रोवाच जननी कृत्स्नस्य जगतो ऽव्यया|| ११|| SP0720121: यथा मे देहजः पुत्रो भविता गोवृषध्वज| SP0720122: त्वद्वीर्यस्त्वत्प्रभावश्च सर्वदेवनमस्कृतः| SP0720123: तथा कुरु महादेव यदि ते प्रियता मयि|| १२|| SP0720131: एवमुक्तस्तदा देव्या देवदेवस्त्रिलोचनः| SP0720132: प्रोवाचेदं महातेजा देव्याः प्रियचिकीर्षया|| १३|| SP0720141: एवं भवतु देवेशे विज्ञप्तिं सफलामिमाम्| SP0720142: करिष्यामि तवेशानि पुत्रस्ते स भवेद्यथा|| १४|| SP0720151: श्रेष्ठः सर्वसुरेशानां महायोगबलान्वितः| SP0720152: कृत्स्नं जगदिदं यस्य वशे स्थास्यति भामिनि|| १५|| SP0720161: गच्छत्या तत्तपः कर्तुं वरः पूर्वमपि त्वया| SP0720162: प्रार्थितो ह्येष पुत्रार्थं तेनावश्यं ददानि ते|| १६|| SP0720171: एवमुक्त्वा तु तौ देवौ गिरिजाभुवनेश्वरौ| SP0720172: नन्दीशेन तदा सार्धं विचरन्तौ जगद्गुरू| SP0720173: सर्वोद्यानानि पश्यन्तौ विन्ध्यमाजग्मतुर्गिरिम्|| १७|| SP0720181: अथागम्य तु विन्ध्यस्य सौवर्णं शिखरोत्तमम्| SP0720182: दरीकन्दरसंकीर्णं नानानिर्झरसंयुतम्| SP0720183: सतडिन्मेघसंघातं घनीकृतशिलोच्चयम्|| १८|| SP0720191: नानावृक्षशिलोपेतं नानाकुसुमसंयुतम्| SP0720192: नानाखगरवामोदं हेमरत्नोज्ज्वलं शुभम्|| १९|| SP0720201: मानसं तस्य मध्ये तु पुरं सृष्ट्वा महर्द्धिमत्| SP0720202: मणिहेममयं दिव्यं देवासुरविमोहनम्| SP0720203: परमैश्वर्यसंयुक्तौ युतौ विविशतुः पुरम्|| २०|| SP0720211: नन्दिनं च ततो देवी समाज्ञापयदव्यया| SP0720212: वत्स नन्दिंस्तथा द्वारे तिष्ठेस्त्वं गणपेश्वर| SP0720213: विशेन्नेह यथा कश्चित्सूक्ष्मो वायुरपि स्थितः|| २१|| SP0720221: कृत्वा शिरसि तामाज्ञां नन्दीशो गणपाधिपः| SP0720222: अभवद्द्वारमूलस्थः कृत्वा तेजो ऽतिदुःसहम्|| २२|| SP0720231: योगयुक्तौ तदा देवौ परां मूर्तिं समास्थितौ| SP0720232: कृत्स्नस्य जगतो योनी पार्वतीभुवनेश्वरौ| SP0720233: तस्थतुः सुचिरं कालं तनयार्थं महाद्युती|| २३|| SP0720241: स न शक्यो मया वक्तुं ब्रह्मणा वा महामुने| SP0720242: संयोगो यो भवेद्देव्या देवदेवस्य शूलिनः| SP0720243: ब्रह्मणो मद्विधानां च स्रष्टासौ परमेश्वरः|| २४|| SP0720251: अवश्यं त्वागमे वाच्यं यथावृत्तं मया श्रुतम्| SP0720252: अतो वक्ष्यामि ते व्यास प्रियः शिष्यश्च मे भवान्|| २५|| SP0720261: योगसंधानमास्थाय तयोरेव महामुने| SP0720262: अतीतं स्थितयोर्दिव्यं सहस्रं शरदामभूत्|| २६|| SP0720271: ततो ऽभवन्निमित्तानि घोराणि त्रासनानि च| SP0720272: चचाल पृथिवी कृत्स्ना सशैलवनकानना|| २७|| SP0720281: नद्यः शोषं तदा जग्मुश्चुक्षुभे सरितां पतिः| SP0720282: तपनो निष्प्रभश्चासीद्ववावुष्णं समीरणः| SP0720283: पेतुरुल्का महाघोरा दिक्प्रदाहश्च दारुणः|| २८|| SP0720291: एवमुत्पातवित्रस्ता शुभहेतोर्वसुंधरा| SP0720292: जगाम शरणं विष्णुं गत्वा चार्तिं निवेदयेत्|| २९|| SP0720301: उत्पाता दारुणा देव बभूवुर्बहवो भृशम्| SP0720302: तेनातीव समुद्विग्ना त्वामद्य शरणं गता|| ३०|| SP0720311: अथ विष्णुः सुरान्सर्वानिदमश्रावयत्प्रभुः| SP0720312: ततो दिवौकसः सर्वे बृहस्पतिपुरोगमाः| SP0720313: एकत्र संगता भूत्वा चक्रुर्बहुविधाः कथाः|| ३१|| SP0720321: महाबुद्धिरथाहेदं वाक्यमङ्गिरसः सुतः| SP0720322: श्रीकण्ठो भगवानेष देवदेवस्त्रिलोचनः| SP0720323: युक्तो ऽभूद्धिमवत्पुत्र्या तनयार्थं महाद्युतिः|| ३२|| SP0720331: दिव्यं वर्षसहस्रं तु योगेन परमेष्ठिनः| SP0720332: अगाद्युक्तस्य पार्वत्या बभूवुर्दारुणास्ततः| SP0720333: उत्पाता जगतस्त्रासाश्चिन्त्यते किमिहापरम्|| ३३|| SP0720341: गच्छाम सहिताः सर्वे स्तोतुं भक्त्या वृषध्वजम्| SP0720342: यथा न देहजः पुत्रो भवेद्देव्याः सुरेश्वराः| SP0720343: विज्ञापयाम देवेशं तथा शीघ्रमिहामराः|| ३४|| SP0720351: ततो वैवस्वतः प्राह वचः क्रोधविनिःसृतम्| SP0720352: किमर्थं भृशमुद्विग्ना भवन्तः सर्व एव हि|| ३५|| SP0720361: यद्यसौ देवदेवस्य तनयो ऽस्मासु भक्तिमान्| SP0720362: उत्पत्स्यति न च द्रोग्धा ततः क्षंस्याम तं सुराः|| ३६|| SP0720371: अथ चेत्कर्कशो ऽस्मासु द्रोग्धा वा स भविष्यति| SP0720372: तत एनमहं बद्ध्वा कालपाशेन बालकम्| SP0720373: नयिष्ये स्ववशं क्रूरं मृत्युना सहितो ऽमराः|| ३७|| SP0720381: न चेत्पुरंदरो वज्रं तस्य क्षेप्स्यति मूर्धनि| SP0720382: द्विधा येन कृतो मूढः प्राणांस्त्यक्ष्यति दुस्त्यजान्|| ३८|| SP0720391: ब्रुवतस्तस्य बह्वेवं क्रोधसंरक्तलोचनः| SP0720392: विष्णुः प्रोवाच धर्मात्मा वचांसि परमार्थवित्|| ३९|| SP0720401: अहो त्वया सुविश्रब्धं प्रोच्यते भास्करात्मज| SP0720402: परमार्थमविज्ञाय क्रोधस्य वशवर्तिना|| ४०|| SP0720411: तनयः किल यः शम्भोर्गिरिजायां भविष्यति| SP0720412: स मूढ इव यः कश्चिद्भविता वशगस्तव|| ४१|| SP0720421: किमसौ मानवो ऽन्यो वा जरामृत्युसमन्वितः| SP0720422: उत्पत्स्यति रवेः पुत्र तेन स्याद्वशगस्तव|| ४२|| SP0720431: कालेनापरिपूर्णेन मानवस्यापि भानुज| SP0720432: न त्वं वशयिता नाम किमु पुत्रस्य शूलिनः|| ४३|| SP0720441: तेजो भगवतः शम्भोर्यद्भविष्यत्युत्तमम्| SP0720442: स कथं वध्यतां यायात्तव शक्रस्य वा विभो|| ४४|| SP0720451: ब्रवीमि वो हितं देवाः क्रियते यदि मद्वचः| SP0720452: प्रयाम सहिताः सर्वे तं प्रसादयितुं हरम्|| ४५|| SP0720461: यो नः स्वयंवरे दत्तो वरस्तिष्ठति शंकरे| SP0720462: तमेव वरयिष्यामो वरमग्र्यं पिनाकिनम्| SP0720463: यथा न देहजो देव्यास्तनयः संभविष्यति|| ४६|| SP0720471: नास्माकमहितं शम्भुः पुत्रमुत्पादयिष्यति| SP0720472: वयमेव सुताः सर्वे शंकरस्याग्रजा विभोः|| ४७|| SP0720481: न शक्यस्तपसा द्रष्टुं न ज्ञानेन सुरेश्वरः| SP0720482: भक्त्या परमया द्रष्टुं शक्यः स्यात्स वृषध्वजः|| ४८|| SP0720491: आगच्छध्वं गमिष्यामो यत्र तिष्ठति शंकरः| SP0720492: परां भक्तिं समास्थाय यथा पश्येम शंकरम्|| ४९|| SP0720501: हुतभुक्चैष नो देवस्तत्सकाशं प्रवेक्ष्यति| SP0720502: सर्वेषामेव विज्ञप्त्या सुराणां सुरसत्तमः|| ५०|| SP0720511: इति श्रुत्वा वचस्तस्य विष्णोरमिततेजसः| SP0720512: बृहस्पतिपुरोगास्ते हृष्टात्मानो दिवौकसः| SP0720513: साधु साध्विति संतुष्टा वचांस्यूचुः सुरोत्तमाः|| ५१|| SP0720521: ततो विष्णुसहायास्ते गत्वा ते शृङ्गमुत्तमम्| SP0720522: ऊचुर्हुताशनं देवं वचः स्तुतिपुरःसरम्|| ५२|| SP0720531: त्वमग्ने सर्वदेवानां हितकृत्सर्वतो ऽव्ययः| SP0720532: प्रविश्य त्राहि नः सर्वाञ्छंकराय निवेदय|| ५३|| SP0720541: तथा कुर्यात्सुरश्रेष्ठ येन निर्गम्य शंकरः| SP0720542: अस्मान्निरीक्षते देवः प्रह्वान्भक्तिमतः स्थितान्|| ५४|| SP0720551: इत्युक्तः स सुरैः सर्वैः प्रत्युवाच हुताशनः| SP0720552: अकर्तव्यं हि मे देवा न युष्मान्प्रति विद्यते|| ५५|| SP0720561: पार्वत्या सह संयुक्तं देवदेवेश्वरं परम्| SP0720562: न मे शक्तिर्हरं द्रष्टुं भवन्तश्चाकुला भृशम्| SP0720563: युष्मद्वाक्यमलङ्घ्यं च कृच्छ्रमेतदतीव मे|| ५६|| SP0720571: प्रवेक्ष्ये सुतपं देवाः करिष्ये साहसं महत्| SP0720572: इत्युक्त्वा स जगामाशु भवनं तत्कपर्दिनः|| ५७|| SP0720581: तत्रापश्यत्स्थितं द्वारे नन्दिनं परमौजसम्| SP0720582: द्वारमाक्रम्य तिष्ठन्तं दीप्तपट्टसधारिणम्|| ५८|| SP0720591: तं दृष्ट्वा स तदा वह्निः समालोक्य समन्ततः| SP0720592: नास्ति कश्चिदिहोपायः सूक्ष्मजन्तोरपि स्थिते|| ५९|| SP0720601: प्रवेष्टुमिति संचिन्त्य तमेव शरणं ययौ| SP0720602: नन्दिनं हुतभुग्देवस्तुष्टाव च कृताञ्जलिः|| ६०|| SP0720611: नमो गणाधिपतये नमश्चण्डाय शूलिने| SP0720612: नमः सेनाधिपतये नमः सर्वात्मने सदा|| ६१|| SP0720621: हालाहलाय रुद्राय नीलरुद्राय वै नमः| SP0720622: नमो डाकिनिरुद्राय तथैवार्द्रपटाय च|| ६२|| SP0720631: नमस्ते स्वप्नरुद्राय भस्मरुद्राय ते नमः| SP0720632: नमः श्मशानरुद्राय कोटीरुद्राय ते नमः|| ६३|| SP0720641: नमः पिङ्गलरुद्राय रुद्राधिपतये नमः| SP0720642: नमः प्रमथरुद्राय भूतरुद्राय ते नमः| SP0720643: विरूपाक्षाय रुद्राय श्वेतरुद्राय ते नमः|| ६४|| SP0720651: नमस्ते सततं देव नमस्ते सततं शिव| SP0720652: नमस्ते सततं सौम्य नमस्ते भक्तिवत्सल|| ६५|| SP0720661: मम भक्तस्य देव त्वं देवानां हितमिच्छतः| SP0720662: वरदो भव नन्दीश मा नः क्रोधं कृथाः प्रभो|| ६६|| SP0720671: ततो नन्दीश्वरः प्राह स्तुवन्तमनलं स्थितम्| SP0720672: प्रीतस्तवानया वह्ने भक्त्याहं सुरसत्तम| SP0720673: ब्रूहि किं ते प्रियं देव करोम्यद्य हुताशन|| ६७|| SP0720681: अथ प्रोवाच वह्निस्तं वरदं नन्दिनं स्थितम्| SP0720682: यदि तुष्टो ऽसि मे देव देयो यदि वरश्च मे|| ६८|| SP0720691: देवकार्येण देवेश प्रवेष्टुं दीयतां मम| SP0720692: भवनं देवदेवस्य वर एषो ऽस्तु मे विभो|| ६९|| SP0720701: तं नन्दी प्रत्युवाचेदं कृच्छ्रं देयो वरो ह्ययम्| SP0720702: न तं शक्ष्यसि देवेशं द्रष्टुं त्वं योगमास्थितम्| SP0720703: सह देव्या महेशानं स्रष्टारं जगतो ऽव्ययम्|| ७०|| SP0720711: तथाप्येष मया तुभ्यं देय एव वरो ऽनल| SP0720712: गच्छ सूक्ष्मतरो भूत्वा दुरालक्ष्यो हुताशन| SP0720713: प्रविश्य निष्क्रम क्षिप्रमविज्ञातागमक्रियः|| ७१|| SP0720721: स नन्दिनाभ्यनुज्ञातो जातवेदा मुदा युतः| SP0720722: ज्योतिः सूक्ष्मतरो भूत्वा भास्करस्यांशुना सह| SP0720723: प्रविश्य भवनं शम्भोर्मणिस्तम्भमथाविशत्|| ७२|| SP0720731: वह्नेयमणिमध्यस्थः स्तम्भं तद्भासयन्मुहुः| SP0720732: सो ऽपश्यत्तत्र देवेशं देवीं च भुवनेश्वरीम्| SP0720733: तुष्टाव मनसा देवौ ततो ऽसौ हव्यवाहनः|| ७३|| SP0720741: तथा संस्तूयमानश्च प्रीतिं देव्याश्च दर्शयन्| SP0720742: वीक्ष्य स्तम्भं हरो देवीं वाक्यमेतदभाषत|| ७४|| SP0720751: एष स्तम्भमणिर्देवि भ्राजमान इव प्रिये| SP0720752: संस्तौति मां त्वया सार्धं ददान्यस्मै वरं शुभम्|| ७५|| SP0720760: देव्युवाच| SP0720761: एवं कुरु महादेव भक्तस्यास्य सुरेश्वर| SP0720762: स्तुवतस्त्वा मया सार्धं प्रयच्छ वरमुत्तमम्|| ७६|| SP0720770: देव उवाच| SP0720771: प्रीतो ऽहं मणिमध्यस्थ भक्त्या ते विनयेन च| SP0720772: ब्रूहि कार्यं यथेष्टं त्वं तत्सर्वं ते भविष्यति|| ७७|| SP0720780: अग्निरुवाच| SP0720781: देवास्त्वां द्रष्टुमिच्छन्ति बहिःस्था भुवनेश्वर| SP0720782: भगवंस्ते यथा सर्वे पश्येयुस्त्वां तथा कुरु|| ७८|| SP0720790: देव उवाच| SP0720791: एवमस्तु सुरश्रेष्ठ निर्गत्य त्रिदिवौकसाम्| SP0720792: ददामि दर्शनं वह्ने भवतः प्रियकाम्यया|| ७९|| SP0720801: तथेति समनुज्ञातो वह्निस्तस्माद्विनिर्गतः| SP0720802: देवेभ्यः कार्यमावेद्य तस्थौ योगं समास्थितः|| ८०|| SP0720811: अथ निष्क्रम्य भगवान्देवदेवः पिनाकधृक्| SP0720812: जगाम त्वरितं तत्र यत्र देवाः समासते|| ८१|| SP0720821: अथ दृष्ट्वा महादेवं देवाः सर्वे वृषध्वजम्| SP0720822: प्रणेमुर्मूर्ध्नभिर्हृष्टास्तुष्टुवुश्च मुदा युताः|| ८२|| SP0720831: नमः सहस्रनेत्राय सहस्रचरणाय च| SP0720832: महतां पतये नित्यं देवानां पतये नमः|| ८३|| SP0720841: नमः श्मशानरतये व्याघ्रचर्मसुवाससे| SP0720842: ब्रह्मणश्च शिरो हर्त्रे विष्णवे वरदाय च|| ८४|| SP0720851: नमो दक्षमखघ्नाय नमस्ते त्र्यम्बकाय च| SP0720852: नमो भूताधिपतये प्रधानमथनाय च|| ८५|| SP0720861: पिनाकपाणये नित्यं सर्वयोगात्मयोगिने| SP0720862: नमो नीलशिखण्डाय सपत्नीकाय वै नमः|| ८६|| SP0720871: नमः कामेष्वसक्ताय कामसक्ताय वै नमः| SP0720872: नमः शर्वाय सर्वाय मुण्डिने जटिने नमः| SP0720873: नमः सर्वात्मभूताय दिश नो यन्मनोगतम्|| ८७|| SP0720881: एवं संस्तूयमानो ऽथ सर्वैरेव सुरोत्तमैः| SP0720882: प्रत्युवाच महादेवस्तान्सुरान्प्रणतान्स्थितान्| SP0720883: परितुष्टो ऽस्मि वो देवा ब्रूत किं प्रददानि वः|| ८८|| SP0720891: पुनः प्रणम्य ते देवाः प्राहुर्वचनमुत्तमम्| SP0720892: यो नः स्वयंवरे देव वरो दत्तस्त्वया विभो| SP0720893: तं प्रार्थयाम सहितास्तं नो दातुं त्वमर्हसि|| ८९|| SP0720901: देव्या य एष पुत्रार्थं योगस्ते भुवनेश्वर| SP0720902: कृतो ऽब्दानि बहूनि स्म तं संहर नमस्तव|| ९०|| SP0720911: अशुभानि निमित्तानि दृश्यन्ते सुमहाद्युते| SP0720912: पृथिवी दुःस्थिता देव वयं च भृशमाकुलाः|| ९१|| SP0720921: तेनैष न यथा देव्या देहे संजायते सुतः| SP0720922: जायेत च यथा देव तथा नः कर्तुमर्हसि|| ९२|| SP0720931: तेषां तद्वचनं श्रुत्वा देवदेवो ऽब्रवीद्वचः| SP0720932: महानेष वरः सर्वैः प्रार्थितः सुरपुंगवैः| SP0720933: तथापि च प्रयच्छामि युष्मत्प्रियचिकीर्षया|| ९३|| SP0720941: महान्तं किं त्विदं कालं तेजः संधारितं मया| SP0720942: अस्य प्रपश्यथ स्थानममोघं ह्येतदुत्तमम्|| ९४|| SP0720951: अथैवमुक्ता देवेन ते देवा मुनिसत्तम| SP0720952: बभूवुः सहितास्तूष्णीं सुरा ब्रह्मपुरोगमाः|| ९५|| SP0720961: तेषामग्निस्तदा मध्ये प्रोवाच भुवनेश्वरम्| SP0720962: जुहुध्येतत्परं तेजो मयि देव त्रिलोकप|| ९६|| SP0720971: जुहावाग्नौ ततस्तेजस्तदात्मीयं परं भवः| SP0720972: हुत्वा कृत्स्नं ततस्तस्मिंस्तुष्टो ऽभूत्परमेश्वरः|| ९७|| SP0720981: वरं वृणु हुताश त्वमिति प्रोवाच शंकरः| SP0720982: ततो वह्निः प्रणम्येशं वरानप्रार्थयद्विभुम्|| ९८|| SP0720991: इच्छेयमेनं पुत्रं ते मम नाम्ना प्रकीर्तितम्| SP0720992: शापस्याहमगम्यः स्यां पश्येयं त्वां च नित्यशः| SP0720993: धारयेयं सुखेनैतदुत्सृजेयं च शंकर|| ९९|| SP0721001: सर्वभक्षो ऽप्यलेपः स्यां पापं न च भवेन्मम| SP0721002: मयि देवाश्च यज्ञाश्च प्रतिष्ठां यान्तु शूलधृक्|| १००|| SP0721011: अहं भूतेश्वरश्च स्यामहं पशुपतिश्च ह| SP0721012: अहं तव तनुः स्यां च त्वन्मूर्तिस्त्वदपाश्रयः|| १०१|| SP0721021: वरमिच्छामि देवेश दीयमानमिमं त्वया| SP0721022: एवमस्त्विति तत्सर्वं वह्नये प्रददौ विभुः|| १०२|| SP0721031: विसृज्य च ततो देवान्देवदेवो वृषध्वजः| SP0721032: पुनर्विवेश भवनं देवी चैवमभाषत|| १०३|| SP0721041: क्व गत्वा त्वमिहायातः क्षिप्रं त्रिभुवनेश्वर| SP0721042: किं तद्गुरुतरं कार्यं येन निर्गतवानसि|| १०४|| SP0721051: ततः प्रोवाच देवेशः पार्वतीं रुषिताननाम्| SP0721052: गतो ऽस्मि त्वरितो देवि देवैर्विज्ञापितः प्रिये| SP0721053: बहिःस्थैः पद्मपत्राक्षि भक्तिमद्भिः सुदुःखितैः|| १०५|| SP0721061: अथोवाच ततो देवी देवं सर्वजगत्पतिम्| SP0721062: कथं त्वमागतान्देव बहिःस्थांस्त्रिदिवौकसः| SP0721063: ज्ञातवानसि संत्रस्तान्केनाख्यातं च ते विभो|| १०६|| SP0721070: देव उवाच| SP0721071: प्रविश्य हुतभुग्देवि मणिस्तम्भं समास्थितः| SP0721072: न्यवेदयत्स्तुवन्मह्यं सर्वान्देवान्बहिःस्थितान्| SP0721073: तवैवानुज्ञया देवि यस्मै दत्तो वरो मया|| १०७|| SP0721081: ततो भगवती क्रुद्धा नन्दिनं प्रति पार्वती| SP0721082: कथं प्रविष्टवान्वह्निर्द्वारस्थस्येह दुर्मतेः|| १०८|| SP0721091: ततस्तस्य भृशं क्रुद्धा श्रवणे न्यस्तमुत्पलम्| SP0721092: गृहीत्वा वज्रसंकाशं नन्दीशाय व्यसर्जयत्|| १०९|| SP0721101: द्वादशादित्यसंकाशं ज्वलन्तं तत्तदोत्पलम्| SP0721102: वधार्थं नन्दिनो घोरं प्रससार स्फुटन्निव|| ११०|| SP0721111: हतो नन्दीश्वर इति प्रोच्योत्थाय च शंकरः| SP0721112: भद्रं भवोत्पल क्षिप्रमित्युक्त्वागृह्णदुत्पलम्|| १११|| SP0721121: अथोमापि ततो देवी प्रत्यापत्तिं जगाम ह| SP0721122: अहो बत महत्कष्टं कृतं क्रोधवशान्मया| SP0721123: कथंचिन्न हतो नन्दी महागणपनायकः|| ११२|| SP0721131: तद्गृहीत्वा ततो हस्ताद्देवस्य श्रवणोत्पलम्| SP0721132: चिक्षेप त्वरितं देवी भद्रं भवतु ते सरः|| ११३|| SP0721141: एवमुक्त्वा ततः क्षिप्तं देव्या तच्छ्रवणोत्पलम्| SP0721142: विन्ध्यपृष्ठे सरस्तत्र बहुपद्मोत्पलं बभौ|| ११४|| SP0721151: हंससारससंकीर्णं चक्रवाकोपशोभितम्| SP0721152: नाम्ना भद्रोत्पलं नाम हैमशृङ्गसमीपतः|| ११५|| SP0721161: तत्र स्नात्वा नरः क्षिप्रं सर्वपापैः प्रमुच्यते| SP0721162: तत्राक्षयं सदा दानं पितृतर्पणमेव च| SP0721163: मृतश्चात्र नरो याति नन्दीश्वरसलोकताम्|| ११६|| SP0721171: ततो देवं पुनर्देवी वाक्यमाह गिरेः सुता| SP0721172: किमूचुस्त्वां सुरा देव कीदृशं चार्थयन्वरम्|| ११७|| SP0721181: कथयामास देवेशस्ततो देव्यै वृषध्वजः| SP0721182: देवैर्विज्ञापितो देवि निर्गतो ऽहं वरानने|| ११८|| SP0721191: देव्या य एष पुत्रार्थं योगस्ते भुवनेश्वर| SP0721192: - - - - - - - - - - - - - - - -|| ११९|| SP0721201: अशुभान्यत्र दृश्यन्ते दारुणानि सहस्रशः| SP0721202: संत्रस्ता पृथिवी कृत्स्ना वयं च भृशमाकुलाः|| १२०|| SP0721211: तेनैष न यथा देव्या गर्भे संजायते सुतः| SP0721212: भवेच्च तनयः श्लाघ्यो वर एष प्रदीयताम्|| १२१|| SP0721221: ततो ऽग्नौ तद्धुतं तेजो मया पुत्रार्थमीश्वरि| SP0721222: सुतस्ते भविता श्रीमान्षट्शिरा द्वादशेक्षणः|| १२२|| SP0721231: तस्य तद्वचनं श्रुत्वा शशाप गिरिजामरान्| SP0721232: यस्मान्मम सुतो देहे नेप्सितस्तैर्दुरात्मभिः| SP0721233: स्वासु पत्नीषु तस्मात्ते न प्राप्स्यन्ति सुराः सुतम्|| १२३|| SP0721241: पृथिवी चापि संमूढा मच्छापोपहतेन्द्रिया| SP0721242: बहून्पतीन्समासाद्य न पुत्रं प्राप्स्यते क्वचित्| SP0721243: विरराम ततो देवी शप्त्वा देवान्सवासवान्|| १२४|| SP0721250: सनत्कुमार उवाच| SP0721251: कैटभा नाम नाम्ना च पुण्या नैकवरप्रदा| SP0721252: विन्ध्यस्य शिखरे हैमे तत्राभूद्गिरिजा शुभा|| १२५|| SP0721261: पुण्यमायतनं तद्धि शिलां च रमणाह्वयाम्| SP0721262: यो ऽभिगच्छेन्नरो व्यास मृतः स गणपो भवेत्|| १२६|| SP0721271: अथाजग्मुः सुराः सर्वे सार्धं तत्र हविर्भुजा| SP0721272: विवर्णाः कश्मलोपेताः सगर्भा लज्जयान्विताः|| १२७|| SP0721281: तान्द्वाःस्थानागतान्नन्दी शंकराय न्यवेदयत्| SP0721282: प्रविश्य समनुज्ञाता देवमूचुर्दिवौकसः|| १२८|| SP0721291: तेजो न शक्नुमः सोढुमिदं त्रिभुवनेश्वर| SP0721292: त्राहि नः सुरलोकेश यथा स्याम गतज्वराः|| १२९|| SP0721301: अन्धकश्चासुरो ऽत्यर्थं तप्यते दुश्चरं तपः| SP0721302: भयं च नस्ततो देव दृश्यते सुमहद्विभो|| १३०|| SP0721310: देव उवाच| SP0721311: मा भीर्भवतु वो देवा हंस्ये तमहमन्धकम्| SP0721312: युष्मदर्थे पराक्रान्तं हिरण्याक्षसुतं वरम्|| १३१|| SP0721321: यूयं च मेरुमध्यस्थं वनं यात सुविस्तृतम्| SP0721322: नाम्ना शरवरं नाम पुण्यं द्वादशयोजनम्|| १३२|| SP0721331: युष्माकं तत्र संभित्त्वा कुक्षीन्दैवतपुंगवाः| SP0721332: मदीयं तत्परं तेजो निर्गमिष्यति दीप्तिमत्| SP0721333: सुवर्णत्वं च यास्यन्ति कुक्षयो वः सुरोत्तमाः|| १३३|| SP0721341: ततस्ते तद्वचः श्रुत्वा प्रणम्य शिरसा भवम्| SP0721342: श्रीमन्तं मेरुमाजग्मुः शरधानं च तच्छुभम्|| १३४|| SP0721351: यत्र तेषां तदा भित्त्वा तेजो ऽग्नेश्च व्यनिष्क्रमत्| SP0721352: युगान्तानलसंकाशं दुर्निरीक्ष्यं सुरैरपि|| १३५|| SP0721361: मेरुश्चैवाभवत्क्षिप्रं श्रीमानतिमनोहरः| SP0721362: सर्वं हिरण्मयं चक्रे तेजो माहेश्वरं परम्|| १३६|| SP0721371: वाति गन्धवहो दिव्यः सर्वर्तुकुसुमावहः| SP0721372: तेषां च कुक्षिभेदास्ते सुवर्णत्वं परं ययुः|| १३७|| SP0721381: स्वर्गे दुन्दुभयो दिव्या नेदुः स्वयमनाहताः| SP0721382: पुष्पाणां वृष्टयः पेतुः सुगन्धानामनेकशः| SP0721383: नमस्कारैश्च भूतानामदृश्यानामभूत्स्वनः|| १३८|| SP0721391: एवमादीनि पश्यन्तः शृण्वन्तश्च सुरोत्तमाः| SP0721392: गत्वा पिनाकिने हृष्टाः सर्वमावेद्य सुव्रत| SP0721393: प्रेषिताः स्थाणुना जग्मुः स्वांल् लोकान्हृषिताननाः|| १३९|| SP0721401: श्रुत्वा देवैरभिहितमिदं प्रीतियुक्तैर्वचो ऽग्र्यं SP0721402: प्रीता देवी हृदयमहिता पुत्रजन्मप्रवृत्तिम्| SP0721403: ज्ञात्वा तस्थौ विबुधवरदा योगमाता विधात्री SP0721404: तुष्टिं चागादृषिसुरशिरःस्पृष्टपादारविन्दा|| १४०|| SP0729999: इति स्कन्दपुराणे द्विसप्ततितमो ऽध्यायः||