Skandapurāṇa Adhyāya 64 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Yokochi, Yuko, ed. The Skandapurāṇa. Vol.III. Adhyāyas 34.1-61, 53-69. The Vindhyavāsinī Cycle. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis. Leiden/Groningen: Brill & Egbert Forsten, 2013. SP0640010: सनत्कुमार उवाच| SP0640011: आहत्य भेरीः संनाह्या दितिजा दानवाश्च ते| SP0640012: तदा संनाहयामासू रथनागतुरंगमान्|| १|| SP0640021: गृहीततोयानानीय दैत्या मत्तान्मतङ्गजान्| SP0640022: मदस्फातिकरान्दत्त्वा धूपांश्च कवलानि च|| २|| SP0640031: बद्ध्वा कक्षाश्च संनाह्या ग्रैवेयांश्च सुसंस्कृतान्| SP0640032: अङ्कुशान्सर्वलोहांश्च हेमरत्नपरिष्कृतान्| SP0640033: करेणुषु समारूढाः समन्ताद्गजसादिनः|| ३|| SP0640041: आबबन्धुर्विचित्राणि वर्माणि विधिवत्तदा| SP0640042: तिर्यगूर्ध्वमुखान्सम्यग्बबन्धुस्तोमरेषुधीन्|| ४|| SP0640051: आयुधानि च सर्वाणि बबन्धुरुभयोरपि| SP0640052: पार्श्वयोरासनानां तु त्रयाणामपि भागशः| SP0640053: वैजयन्तीपताकाश्च समुच्छिश्रियिरे ततः|| ५|| SP0640061: तुरंगान्स्नातपीतांश्च वर्मिणो बद्धवालधीन्| SP0640062: आरूढा बद्धनिस्त्रिंशा दानवा लोहजालिनः|| ६|| SP0640071: आरूढा रथिनः केचिद्रथान्युक्ततुरंगमान्| SP0640072: सायुधान्सपताकांश्च प्रयस्तान्स्वक्षकूबरान्|| ७|| SP0640081: अथ सुम्भो निसुम्भश्च भ्रातरौ दानवेश्वरौ| SP0640082: आरुह्य बद्धकवचौ बलोन्मत्तौ महासुरौ|| ८|| SP0640091: संग्रामिकौ सुसंयत्तौ रथौ वल्गत्तुरंगमौ| SP0640092: सायुधौ सपताकौ च कार्तस्वरमयौ पृथक्|| ९|| SP0640101: निर्जग्मतुर्महोरस्कौ प्रयुक्तजयमङ्गलौ| SP0640102: मागधैर्वन्दिभिः सूतैः स्तूयमानौ पुरःसरैः|| १०|| SP0640111: ततो यातुं समारब्धास्तूर्याण्याहत्य संघशः| SP0640112: यत्रास्ते कौशिकी देवी तं शैलमभितो ऽसुराः|| ११|| SP0640121: अथ दानवसिंहानां ध्वजाः पेतुर्यियासताम्| SP0640122: अशिवं च शिवा नेदुर्दीप्तायां दिशि संस्थिताः|| १२|| SP0640131: पपात नभसो रेणुः कपोतोदरधूसरः| SP0640132: उपरिष्टाच्च सेनाया बभ्रमुर्गृध्रवायसाः|| १३|| SP0640141: प्रतीपं च ववौ तेषां रजोगर्भः समीरणः| SP0640142: ररास परुषं व्योम चचाल च वसुन्धरा|| १४|| SP0640151: पराजयनिमित्तानि बुध्यमानाः सुरद्विषः| SP0640152: अभिजग्मुः कृतान्तेन कृष्यमाणा इवावशाः|| १५|| SP0640161: आदिदेशाथ दैत्येन्द्रो मूकमारक्षिकं तदा| SP0640162: गृहाण शुल्कमिति तां ब्रूहि गत्वा सुमध्यमाम्|| १६|| SP0640171: स गत्वा वचनात्तस्य प्रणम्योवाच कौशिकीम्| SP0640172: शुल्कं किल गृहाणार्ये दीयमानं सुरद्विषा|| १७|| SP0640181: एवमस्त्विति सा प्रोच्य तं विसृज्य च दानवम्| SP0640182: व्यवर्धत महायोगा योगमास्थाय कौशिकी|| १८|| SP0640191: अथ तस्याः समुत्पेदुर्गात्रेभ्यः प्रमदोत्तमाः| SP0640192: बद्धगोधाङ्गुलित्राणाः सायुधा भीमदर्शनाः|| १९|| SP0640201: वायसी वायसास्यानां स्त्रीणां कोट्या समावृता| SP0640202: उपका कौशिकास्याभिस्तावतीभिर्महाबला|| २०|| SP0640211: प्रचण्डा सिंहवक्त्राभिर्देवीभिरभिसंवृता| SP0640212: उग्रा व्याघ्रमुखाभिश्च परितः परिरक्षिता|| २१|| SP0640221: जया च गजवक्त्राभिर्जयन्ती च महाबला| SP0640222: देवीभिः शिखिवक्त्राभिरमेयाभिर्वृतानघा|| २२|| SP0640231: जयमानाश्ववक्त्राभिर्हंसास्याभिः प्रभा वृता| SP0640232: प्रभावती च चक्राह्ववदनाभिर्महाबला|| २३|| SP0640241: शिवा गोमायुवक्त्राभिरशिवा विद्विषां रणे| SP0640242: सरमा श्वमुखीभिश्च वृता परमदुर्जया|| २४|| SP0640251: विजया श्येनवक्त्राभिः सर्वतः परिरक्षिता| SP0640252: कङ्कास्याभिर्वृता मृत्युर्हन्त्रीभिः समरे रिपून्|| २५|| SP0640261: नियतिर्मद्गुवक्त्राभिर्दुर्जयाभिः परैर्युधि| SP0640262: अशनिः कुक्कुटास्याभिर्बह्वीभिरभिपालिता|| २६|| SP0640271: रेवती वृषदंशा च पूतना कटपूतना| SP0640272: आलम्बा किंनरी षष्ठी शकुनिर्मुखमण्डिका|| २७|| SP0640281: अलक्ष्मीरधृतिर्लक्ष्मी पोतकी वानरी स्पृहा| SP0640282: एताश्चान्याश्च कौशिक्याः संबभूवुर्महाबलाः|| २८|| SP0640291: नानावेषधराभिश्च बह्वीभिः परितो वृताः| SP0640292: बिभ्रतीभिर्विचित्राणि कवचान्यायुधानि च|| २९|| SP0640301: ससर्ज कौशिकी तूर्णं हैमान्सांग्रामिकान्रथान्| SP0640302: युक्तानश्वैर्मनोवेगैः सायुधानुच्छ्रितध्वजान्|| ३०|| SP0640311: वाजिनः सोपकरणान्मत्तोन्मत्तान्मतङ्गजान्| SP0640312: आयुधानि तनुत्राणि तूर्याणि विविधानि च|| ३१|| SP0640321: उवाच च महायोगा ता देवीः पुरतः स्थिताः| SP0640322: देव्यः सुम्भो निसुम्भश्च भ्रातरौ देवकण्टकौ|| ३२|| SP0640331: नेतुं मां किल संग्रामे विजित्य रणमूर्धनि| SP0640332: आगतौ तौ बलोन्मत्तौ सहितौ दैत्यदानवैः|| ३३|| SP0640341: तावहं विनिहंस्यामि शेषान्हत सुरद्विषः| SP0640342: अजराश्चामराश्चैव भविष्यथ महाबलाः|| ३४|| SP0640351: इति ताभ्यो वरं दत्त्वा समादिश्य च तास्तदा| SP0640352: देवीर्देवी महायोगा युद्धाय कृतनिश्चया|| ३५|| SP0640361: अथ सा स्वरथं महारथा मनसाचिन्तयदच्युता तदा| SP0640362: तमुपस्थितमाशु चिन्तितं प्रददौ यं गिरिराजनन्दना|| ३६|| SP0640371: ज्वलदग्निसमानवर्चसं परितो रत्नमयूखमालिनम्| SP0640372: पुरतः समवेक्ष्य कौशिकी सुकृतं हेममयं नभश्चरम्|| ३७|| SP0640381: विविधायुधवर्मसंयुतं प्रचलत्पिङ्गसटाकलापिभिः| SP0640382: समरे जयिभिर्द्विषद्बलं युक्तं केसरिभिर्महाबलैः|| ३८|| SP0640391: नृत्यन्मयूरेण विकीर्णभासा समुच्छ्रितेनातितरां दृढेन| SP0640392: हैमेन रत्नद्युतिभास्वरेण ध्वजप्रवेकेन विराजमानम्|| ३९|| SP0640401: जग्राह विजया छत्त्रं सिंही सूता तदाभवत्| SP0640402: जयन्ती च जया चास्या दधतुश्चामराण्यथ|| ४०|| SP0640411: ततः सा बद्धकवचा विविधायुधधारिणी| SP0640412: आरुरोह रथं दिव्यं कृताशीर्जयमङ्गला|| ४१|| SP0640421: संपूर्णचन्द्रद्युतिनाथ मूर्ध्नि समुच्छ्रितेनातपवारणेन| SP0640422: संवीज्यमाना च विचित्रदण्डैः सुचामरैरिन्दुमरीचिगौरैः|| ४२|| SP0640431: ततस्तास्तूर्यमाहत्य नेदुर्नादान्पृथग्विधान्| SP0640432: देव्या देव्यः सुसंयत्ता बभूवुश्च पुरःसराः|| ४३|| SP0640441: तेन नादेन दैत्यानां हृदयानि चकम्पिरे| SP0640442: विससर्ज शकृन्मूत्रं हस्त्यश्वं चासुरे बले|| ४४|| SP0640451: चकम्प इव भूर्लोकश्चुक्षुभुः सागरा इव| SP0640452: विचेलुरिव शैलेन्द्राः पुस्फोटेव नभस्तलम्|| ४५|| SP0640461: तदा तद्देवतानीकं पताकाध्वजशोभितम्| SP0640462: विरेजे विनदत्तूर्यं शितनिस्त्रिंशसंकुलम्|| ४६|| SP0640471: बलाकापङ्क्तिशबलं सेन्द्रचापं महास्वनम्| SP0640472: नभस्ये मासि सतडिद्वृन्दं जलमुचामिव|| ४७|| SP0640481: ततो जगाम संयत्तं दैत्येन्द्राभिमुखं तदा| SP0640482: जवेन देवतानीकं संक्षिप्येव दिशो दिशः|| ४८|| SP0640491: अथ ददृशुरनीकमागतं सुररिपवो विविधोच्छ्रितध्वजम्| SP0640492: प्रतिभयजननं महास्वनं प्रलय इवाम्बुदवृन्दमुन्नतम्|| ४९|| SP0649999: इति स्कन्दपुराणे चतुःषष्टो ऽध्यायः||