Skandapurāṇa Adhyāya 63 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Yokochi, Yuko, ed. The Skandapurāṇa. Vol.III. Adhyāyas 34.1-61, 53-69. The Vindhyavāsinī Cycle. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis. Leiden/Groningen: Brill & Egbert Forsten, 2013. SP0630010: सनत्कुमार उवाच| SP0630011: अथ निर्जित्य समरे देवान्देवद्विषस्तदा| SP0630012: आजग्मुः सहिता विन्ध्यं शिखरालीनतोयदम्|| १|| SP0630021: प्रस्थाप्य विधिवत्सर्वांस्तौ तदा दैत्यदानवान्| SP0630022: रेमाते सहितौ विन्ध्ये किंनरोद्गीतकन्दरे|| २|| SP0630031: आरक्षिकस्तयोस्तत्र मूको नाम महासुरः| SP0630032: अपश्यच्छिखरे देवीं ज्वलन्तीमिव तेजसा|| ३|| SP0630041: पुण्यलक्षणसंपूर्णां दिव्याभरणभूषिताम्| SP0630042: आगतां तत्र तां सिद्धिं पुण्यानां कर्मणामिव|| ४|| SP0630051: अथ मूकस्तदा देवीं विस्मयोत्फुल्ललोचनः| SP0630052: दृष्ट्वा जगाम मनसा सुम्भं दानवसत्तमम्|| ५|| SP0630061: यथेयं चारुसर्वाङ्गी प्रधाना सर्वयोषिताम्| SP0630062: तथा पुंसां प्रधानो ऽसौ सुम्भो दैत्येन्द्रचन्द्रमाः|| ६|| SP0630071: विस्तीर्णवक्षसस्तस्य विशालजघनस्थला| SP0630072: अनुरूपा भवेत्पत्नी दीर्घाक्षस्यासितेक्षणा|| ७|| SP0630081: इति संचिन्त्य मनसा तामुवाच सुमध्यमाम्| SP0630082: का त्वं त्रस्तसमुद्भ्रान्तमृगशावविलोचने|| ८|| SP0630091: कः पिता ते ऽनवद्याङ्गि का वा माता तवानघे| SP0630092: किमर्थं वा वसस्यत्र गिरौ दानवसेविते|| ९|| SP0630101: एवमुक्ताथ मूकेन महायोगा सुरेश्वरी| SP0630102: विज्ञाय मनसा कालं प्राप्तं सुम्भनिसुम्भयोः|| १०|| SP0630111: स्मितपूर्वमिदं प्राह वाक्यं वाक्यविशारदा| SP0630112: मानुषीं मां विजानीहि गिरावस्मिन्कृतालयाम्|| ११|| SP0630121: आत्रेयः स्वर्गतो विद्वान्पिता चक्रचरो मम| SP0630122: विहाय मां पुरा बालां माताप्यनुगता पतिम्|| १२|| SP0630131: आज्ञाप्तास्मि तदा मात्रा प्रदायास्त्राणि दानव| SP0630132: वस विन्ध्ये गिरौ रम्ये योग्यां च कुरु सर्वदा|| १३|| SP0630141: साहं वचनमार्यायाः पालयन्ती नगोत्तमे| SP0630142: वसामि सिंहशार्दूलमातङ्गमृगसेविते|| १४|| SP0630151: इति देव्या वचः श्रुत्वा मूकः संहृष्टमानसः| SP0630152: जगाम दानवश्रेष्ठं सुम्भं द्रष्टुं कृतत्वरः|| १५|| SP0630161: अथ सुम्भं समासाद्य हर्षेणोत्फुल्ललोचनः| SP0630162: आचचक्ष इवाकारैरपूर्वं रत्नदर्शनम्|| १६|| SP0630171: तं दृष्ट्वा विस्मयोत्फुल्लरक्तायतविलोचनम्| SP0630172: मूकमाह तदा सुम्भः कस्मात्तुष्टो ऽसि दानव|| १७|| SP0630181: एवमुक्तः स सुम्भेन मूको वचनमब्रवीत्| SP0630182: अपूर्वमद्य दृष्टं मे स्त्रीरत्नं शिखरे गिरेः|| १८|| SP0630191: न तादृशा मनुष्येषु न देवेष्वस्ति सुन्दरी| SP0630192: न रक्षःसु न यक्षेषु न गन्धर्वपुरेषु वा|| १९|| SP0630201: न नागेषु न सिद्धेषु न दैत्यपतिवेश्मसु| SP0630202: दृष्टपूर्वा मया राजन्यादृशा सा वराङ्गना|| २०|| SP0630211: का त्वं कस्य किमर्थं वा वससीह गिराविति| SP0630212: पृष्टाब्रवीन्मया वाक्यमात्रेयदुहिता ह्यहम्|| २१|| SP0630221: वसामि चात्र विन्ध्यस्य शिखरे मातुराज्ञया| SP0630222: इति भर्तुः समाख्याय विरेमे मूकदानवः|| २२|| SP0630231: अथ सुम्भस्य हृदये मूकस्य वचसा सह| SP0630232: कामो ऽवकाशमकरोद्विनाशाय सुरद्विषाम्|| २३|| SP0630241: ततः प्रोवाच दैत्येन्द्रः कामाकुलितमानसः| SP0630242: गच्छ मूक मदर्थे तां प्रलोभय सुमध्यमाम्|| २४|| SP0630251: एवमुक्तः स सुम्भेन द्रुतमुत्थाय दानवः| SP0630252: प्रययौ यत्र सा देवी प्रागनेनाभिलक्षिता|| २५|| SP0630261: तं दृष्ट्वा दानवं देवी कृताञ्जलिमुपस्थितम्| SP0630262: किमर्थमागतो ऽसीति मूकं पृष्टवती तदा|| २६|| SP0630271: एवं पृष्टो ऽथ कौशिक्या प्राहेत्थं मूकदानवः| SP0630272: आर्ये दूतो ऽस्मि सुम्भस्य त्वत्समीपमुपागतः|| २७|| SP0630281: अथ देवी स्मितं कृत्वा प्रसन्नमभिवीक्ष्य तम्| SP0630282: इत्थमाहागतं दूतं किमाहासौ ऽसुरेश्वरः|| २८|| SP0630291: इति पृष्टस्तदा देव्या प्राह मूकः कृताञ्जलिः| SP0630292: आर्ये दैत्येश्वरः सुम्भः पत्नीत्वेन वृणोति ते|| २९|| SP0630301: तस्य दानवसिंहस्य जेतुः शक्रस्य संयुगे| SP0630302: भवाग्र्या सर्वपत्नीनां पत्नी मृगविलोचने|| ३०|| SP0630311: एवमुक्ता तदा तेन विहस्याहामरेश्वरी| SP0630312: स्वबाहूनवलोक्येत्थं युद्धशुल्कामवैहि माम्|| ३१|| SP0630321: मां विनिर्जित्य दैत्यो ऽसौ पत्नीं वै कर्तुमर्हति| SP0630322: मया वा निहतो यातु काकगोमायुभोज्यताम्|| ३२|| SP0630331: एवमुक्तवतीं देवीमाह मूको हसन्निव| SP0630332: पत्या दानवदैत्यानां किं ते युद्धेन भामिनि|| ३३|| SP0630341: क्रुद्धस्य तस्य समरे न शशाक निरीक्षितुम्| SP0630342: मुखमैरावतस्कन्धगतो ऽपि वलवृत्रहा|| ३४|| SP0630351: श्रुत्वा तद्वचनं तस्य प्राह देवी स्मयन्निव| SP0630352: तृणानि मम दैत्येन्द्राः सर्वे ऽपि रणमूर्धनि|| ३५|| SP0630361: निवेदयस्व सुम्भस्य गच्छ त्वं दानवाधम| SP0630362: दौत्येनासि यतः प्राप्तो मयातो न विहन्यसे|| ३६|| SP0630371: अथ प्रणम्य तां मूको ययौ पार्श्वं सुरद्विषः| SP0630372: अनुज्ञातश्च तेनासावाख्यातुमुपचक्रमे|| ३७|| SP0630381: सा मया प्रार्थिता कन्या त्वदर्थे दानवोत्तम| SP0630382: उवाच युद्धशुल्कास्मि जित्वा मां नेतुमर्हति|| ३८|| SP0630391: भूयश्चोक्तवती राजन्गर्वमालम्ब्य साङ्गना| SP0630392: तृणानि मम संग्रामे दैत्या इति सविस्मया|| ३९|| SP0630401: तत्तदा वचनं तस्या मूकेनोक्तं निशाम्य सः| SP0630402: क्रोधाद्दर्पाच्च कामाच्च ममृषे नासुरोत्तमः|| ४०|| SP0630411: अथोत्थाय सभां रम्यामगच्छद्दानवाधिपः| SP0630412: स्फाटिकस्तम्भनिर्यूहां विचित्रमणितोरणाम्|| ४१|| SP0630421: तस्यां सिंहासने हैमे स्वास्तीर्णे महति स्थिरे| SP0630422: निषसाद महाबाहुः सुखायां वरुणो यथा|| ४२|| SP0630431: अनु तस्य निसुम्भो ऽपि निषसाद वरासने| SP0630432: रत्नाङ्गदांशुनिवहच्छुरितोरःस्थलस्तदा|| ४३|| SP0630441: तयोरनु महासत्त्वा विविशुर्दैत्यदानवाः| SP0630442: दरीं हिमवतो रम्यां करिश्यामा इवाम्बुदाः|| ४४|| SP0630451: अथ तेषूपविष्टेषु दैत्यदानवराजसु| SP0630452: प्रोवाच वचनं सुम्भो घनस्तनितनिस्वनः|| ४५|| SP0630461: आरक्षिको गिरौ विन्ध्ये मदीयो मूकदानवः| SP0630462: विन्ध्यस्य शिखरे कन्यां दृष्टवांश्चारुरूपिणीम्|| ४६|| SP0630471: युद्धशुल्काहमित्याह मदर्थे ऽनेन सा वृता| SP0630472: तृणानि मम दैत्येन्द्रा भूयश्चोक्तवती किल|| ४७|| SP0630481: जित्वा तां प्रसभं कन्यां समरे गर्वशालिनीम्| SP0630482: विचेष्टमानामवशामद्यैवानेतुमुत्सहे|| ४८|| SP0630491: अथ तस्य वचः श्रुत्वा शम्भुर्नाम महासुरः| SP0630492: प्रहस्योच्चैर्महाबाहुरित्थमाहासुरेश्वरम्|| ४९|| SP0630501: वामप्रकृतयः सर्वाः स्वभावेन वराङ्गनाः| SP0630502: परिसान्त्व्यासकृद्राजंस्त्वं तामादातुमर्हसि|| ५०|| SP0630511: श्रुत्वाथ वचनं शम्भोर्मयो दानवसत्तमः| SP0630512: प्रोवाचाभिनवोत्फुल्लनीलनीरजलोचनः|| ५१|| SP0630521: आकारः कः पुनस्तस्याः का वा चेष्टासुराधिप| SP0630522: पार्श्वस्थानि च कान्यस्याः सदोपकरणानि वा|| ५२|| SP0630531: इत्युक्तवति दैत्येन्द्रे मये मत्तेभविक्रमे| SP0630532: अथ दैत्यपतिर्मूकं पार्श्वस्थं समचोदयत्|| ५३|| SP0630541: यं प्रश्नं पृष्टवांस्तत्र मयो मतिमतां वरः| SP0630542: मूकस्तु तं तदा सर्वमाख्यातुमुपचक्रमे|| ५४|| SP0630551: असौ सुसंस्थिता त्र्यक्षा करालदशनानना| SP0630552: अष्टबाहुर्घनश्यामा सुनसा वल्गुनिस्वना|| ५५|| SP0630561: पार्श्वस्थानि सदा तस्याः सर्वप्रहरणानि च| SP0630562: तनुत्राणि च मुख्यानि चित्राण्याभरणानि च|| ५६|| SP0630571: अत्यादित्यं वपुस्तस्याः कान्तिश्चातिनिशाकरा| SP0630572: इत्याख्याय तदा मूको विरेमे दैत्यसंसदि|| ५७|| SP0630581: अथ दीर्घं विनिःश्वस्य तदा मयमहासुरः| SP0630582: प्रोवाच सदसि स्वन्तं वचो वचनकोविदः|| ५८|| SP0630591: नूनमुत्पादिता देवैः कृत्या युधि पराजितैः| SP0630592: विन्ध्यं महीध्रमायाता विनाशाय सुरद्विषाम्|| ५९|| SP0630601: तदलं ते तया राजन्सन्ति कन्याः सुमध्यमाः| SP0630602: दीर्घाक्ष्यश्चारुसर्वाङ्ग्यो दैत्यदानववेश्मसु|| ६०|| SP0630611: सम्यगाहृत्य ता राजन्ननुरूपाः कलस्वनाः| SP0630612: यथेष्टं क्रीड सततं प्रासादोदरसंस्थितः|| ६१|| SP0630621: एवमुक्ते तदा वाक्ये मयेनासुरसंसदि| SP0630622: प्राह वाक्यं तदा सुम्भो विहस्येत्थं महासुरः|| ६२|| SP0630631: यदि सा देवतैः सृष्टा कृत्या दानवशासने| SP0630632: अहत्वा दानवानाशु तदा सा न विरंस्यते|| ६३|| SP0630641: यावदेव न कृत्यास्मानभियुङ्क्ते कृतोद्यमा| SP0630642: तावदेव प्रसह्याशु तां वशे कर्तुमर्हथ|| ६४|| SP0630651: ततो ऽनुमेनिरे सर्वे दैत्यदानवसत्तमाः| SP0630652: वचनं दैत्यराजस्य कालेनाभिप्रचोदिताः|| ६५|| SP0630661: अथ सदसि समस्तान्दैत्यसिंहांस्तदानीं SP0630662: त्रिदशपतिविजेता वाक्यमेतद्विवृत्य| SP0630663: उदपतदवलम्बस्वच्छशुभ्रोरुहारो SP0630664: नवजलभरनम्रः प्रावृषीवाम्बुवाहः|| ६६|| SP0639999: इति स्कन्दपुराणे त्रिषष्टो ऽध्यायः||