Skandapurāṇa Adhyāya 62 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Yokochi, Yuko, ed. The Skandapurāṇa. Vol.III. Adhyāyas 34.1-61, 53-69. The Vindhyavāsinī Cycle. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis. Leiden/Groningen: Brill & Egbert Forsten, 2013. SP0620010: सनत्कुमार उवाच| SP0620011: अथ निर्जित्य दैत्येन्द्रौ दिवं विक्रमशालिनौ| SP0620012: जग्मतुः सहितौ दैत्यैर्विन्ध्यं तुङ्गशिलोच्चयम्|| १|| SP0620021: सम्पूज्य विधिवद्दैत्यान्प्रस्थाप्य भ्रातरौ तदा| SP0620022: रेमाते विन्ध्यपादेषु फुल्लपादपसानुषु|| २|| SP0620031: दैत्याभ्यामथ विज्ञाय ब्रह्मा सुरपराभवम्| SP0620032: विचिन्त्यैकमनाः सम्यग्वधोपायं तयोस्तदा|| ३|| SP0620041: तिलं तिलं समादाय रत्नेभ्यश्चारुदर्शनाम्| SP0620042: ससर्ज कमनीयाङ्गीमङ्गनां वल्गुनिस्वनाम्|| ४|| SP0620051: तिलोत्तमेति तस्याश्च नाम चक्रे पितामहः| SP0620052: दिव्यानामपि सा स्त्रीणामुपमेव तदा बभौ|| ५|| SP0620061: अतिसंपूर्णवक्त्रां तामतीन्दीवरलोचनाम्| SP0620062: अतिहंसस्वनालापामतिमत्तेभगामिनीम्|| ६|| SP0620071: लक्ष्मी निरीक्ष्य सव्रीडा पङ्कजेनावृणोन्मुखम्| SP0620072: वपुर्भिः स्वैश्च चार्वङ्ग्यां त्रेपुरुद्यानदेवताः|| ७|| SP0620081: तामुत्पाद्य ततो धाता पाकशासनमब्रवीत्| SP0620082: शम्भुना मदनः पूर्वं निर्दग्धो लोचनाग्निना|| ८|| SP0620091: तस्य प्रोद्भूतये यामः सर्वे पार्श्वं पिनाकिनः| SP0620092: तमाराध्य तथा कुर्मो यथा स्यान्मदनः पुनः|| ९|| SP0620101: अथ ते ब्रह्मणा सार्धं तया चासुरविद्विषः| SP0620102: जग्मुर्विन्ध्यगिरेः शृङ्गं यत्रास्ते भगवान्हरः|| १०|| SP0620111: तत्र शर्वमपश्यन्तो दध्युस्ते सुरसत्तमाः| SP0620112: गृणन्तः प्रणवं सर्वे शिवसंन्यस्तचेतसः|| ११|| SP0620121: अथ लिङ्गं समुत्तस्थौ तेषां मध्ये दिवौकसाम्| SP0620122: सुसंहतं सुसंश्लिष्टं समूहस्तेजसामिव|| १२|| SP0620131: उच्चचार तदा तस्मादुच्चैर्वाग्विशदाक्षरा| SP0620132: निर्दग्धो ऽयं मया पापस्तपस्विजनकण्टकः|| १३|| SP0620141: युष्मदर्थे विमोक्ष्यामि कार्यं वो यः करिष्यति| SP0620142: करोतु परितश्चेयं मां प्रदक्षिणमङ्गना|| १४|| SP0620151: एवमुक्ता महेशेन सा चकार प्रदक्षिणम्| SP0620152: संनिधायाञ्जलिं मूर्ध्नि रक्तेन्दीवरकोमलम्|| १५|| SP0620161: नेमे मूर्तिं तदा पूर्वां निःससार ततो मुखम्| SP0620162: त्र्यक्षं प्रसन्नं बिम्बौष्ठममितद्युतिकान्तिमत्|| १६|| SP0620171: अथ तेजो विनिःसृत्य वदनेन्दोः पिनाकिनः| SP0620172: तां विवेशाङ्गनामाशु शरद्भास्करभास्वरम्|| १७|| SP0620181: अथ सा दक्षिणां मूर्तिं प्रणेमे चारुदर्शना| SP0620182: निर्जगाम तदा दीप्तं मुखं सुरगुरोस्ततः|| १८|| SP0620191: वारिभारालसाम्भोदरुचिमद्भीमनिस्वनम्| SP0620192: करालदशनोद्भासि दीप्तरक्तान्तलोचनम्|| १९|| SP0620201: अत्यादित्यं ततस्तेजो मुखान्निःसृत्य दक्षिणात्| SP0620202: दृश्यमानं सुरैः सर्वैर्विवेश प्रमदोत्तमाम्|| २०|| SP0620211: प्रणेमे सा ततस्तस्य पश्चिमां मूर्तिमञ्जसा| SP0620212: निश्चक्राम ततस्तस्या मुखं त्र्यक्षमनुत्तमम्|| २१|| SP0620221: ततस्तेजो विनिःसृत्य मुखेन्दोर्मदनद्विषः| SP0620222: दीप्यमानं विवेशाशु तामेव प्रमदोत्तमाम्|| २२|| SP0620231: उत्तरां मूर्तिमागम्य प्रणेमे सा कृताञ्जलिः| SP0620232: तस्या मुखं सुसंपूर्णं सुप्रसन्नं विनिर्ययौ|| २३|| SP0620241: तस्मात्तेजो विनिःसृत्य सूर्यदीप्तानलप्रभम्| SP0620242: विवेश प्रमदामाशु तामेव वरवर्णिनीम्|| २४|| SP0620251: मुखानि देवदेवस्य सुराणामर्थसिद्धये| SP0620252: चत्वारि निर्ययुर्दिक्षु न तस्या रूपविस्मयात्|| २५|| SP0620261: आत्मसंस्थं पुरा तेजो दग्ध्वा यन्मदनं कृतम्| SP0620262: अनुजग्राह देवेशस्तेन तां प्रमदोत्तमाम्|| २६|| SP0620271: अब्रवीच्च सुरान्सर्वांस्तत्रेदं वचनं शिवः| SP0620272: यस्मादियं मां यूयं च मण्डलेन प्रदक्षिणम्|| २७|| SP0620281: चक्रे सर्वे सुरश्रेष्ठाः स्थानं तस्मादिदं मम| SP0620282: भविष्यति गिरौ विन्ध्ये मण्डलेश्वरसंज्ञितम्| SP0620283: सांनिध्यं सर्वदा ह्यस्मिन्करिष्यामि वरप्रदम्|| २८|| SP0620291: मण्डलेश्वरमीशानं दृष्ट्वा तु प्रयतो नरः| SP0620292: अश्वमेधफलं प्राप्य मम लोकमवाप्स्यति|| २९|| SP0620301: नैकसिद्धशताकीर्णं किंनरोरगसेवितम्| SP0620302: युष्माभिः सर्वदा युक्तं भविष्यति मम प्रियम्|| ३०|| SP0620311: एषा तिलोत्तमा चैव यदर्थं सुरसत्तमाः| SP0620312: सृष्टा युष्माभिरव्यग्रा तद्वः कार्यं करिष्यति|| ३१|| SP0620321: एतामवेक्ष्य तौ दैत्यौ मोहितौ मदनार्दितौ| SP0620322: अन्योन्यं यास्यतो नाशमेषा चैव भविष्यति|| ३२|| SP0620331: अजरा चामरा चैव सर्वाप्सरवरा शुभा| SP0620332: पूज्या चेह सदा स्थाने वन्द्या चैव भविष्यति|| ३३|| SP0620340: सनत्कुमार उवाच| SP0620341: एवमुक्ते महेशेन सुराः सुप्रीतचेतसः| SP0620342: तां स्त्रियं प्रेषयामासुर्वधार्थं दैत्ययोस्तदा|| ३४|| SP0620351: सहायान्प्रददौ चास्यै ब्रह्मा कमलवाहनः| SP0620352: क्रोधं दर्पमृतून्सर्वान्रागं मदनमेव च| SP0620353: कालं मृत्युं च मोहं च विषादं चामितद्युतिः|| ३५|| SP0620361: अथ सम्प्रेषयित्वा तु देवतास्तां तिलोत्तमाम्| SP0620362: आत्मानं पिण्डयामासुर्देवास्ते सर्व एव हि|| ३६|| SP0620371: कः कः कतम आयात इहाद्येति सुरर्षभाः| SP0620372: ततो मध्ये स्थितं भूयस्ते ऽपश्यन्परमेश्वरम्|| ३७|| SP0620381: पिण्ड्यमानेषु देवेषु यस्मान्मध्ये समास्थितः| SP0620382: पिण्डारेश्वर इत्येव तत्रासावभवत्ततः|| ३८|| SP0620391: पिण्डारेश्वरमीशानं दृष्ट्वा भक्त्या तु मानवः| SP0620392: सर्वाशुभविनिर्मुक्तो देहभेदे गणो भवेत्|| ३९|| SP0620401: ततस्ते देवताः सर्वे कृत्वा कार्यमतन्द्रिताः| SP0620402: प्रणम्य परमेशानं स्वानि सद्मानि भेजिरे|| ४०|| SP0620411: सापि चारुमुखापाङ्गी पीनोन्नतपयोधरा| SP0620412: आक्षिपन्तीव चेतांसि सुराणां विभ्रमैस्तदा| SP0620413: प्रतस्थे दक्षिणामाशामासाते यत्र दानवौ|| ४१|| SP0620421: विन्ध्यपादेषु रम्येषु विहगोद्गीतसानुषु| SP0620422: भ्रमन्तावथ दैत्येन्द्रौ स्थितां ददृशतुस्तु ताम्|| ४२|| SP0620431: अशोकशाखामुत्फुल्लामालम्ब्योन्मत्तषट्पदाम्| SP0620432: वसानामंशुकं चित्रमालम्ब्य मणिमेखलाम्|| ४३|| SP0620441: गायन्तीं मधुरं रक्तं समं कलमनाकुलम्| SP0620442: तारमन्द्रातितारैश्च स्वरैः सम्यगलंकृतम्|| ४४|| SP0620451: साक्षादिव तपःसिद्धिं श्रियं मूर्तिमतीमिव| SP0620452: प्राप्तामिव रतिं साक्षात्कान्तिं चान्द्रमसीमिव|| ४५|| SP0620461: ममैवेयं ममैवेयमिति तौ दानवोत्तमौ| SP0620462: अभिसृत्य शुभां देवीं पाण्योर्जगृहतुः समम्|| ४६|| SP0620471: अथ दर्पमदक्रोधमात्सर्याविष्टचेतसौ| SP0620472: तौ चुक्रुधतुरत्यर्थमन्योन्यस्यासुरोत्तमौ|| ४७|| SP0620481: तयोर्गदे ऽन्तकः कालो मृत्युश्चाविविशुर्द्रुतम्| SP0620482: प्रगृह्याथ गदे क्रुद्धावन्योन्यमभिजघ्नतुः|| ४८|| SP0620491: अथैकैकेन तौ तत्र प्रहारेणाभिताडितौ| SP0620492: विषण्णस्थितसर्वाङ्गौ शिवशापविमोहितौ| SP0620493: विसंज्ञौ पतितौ भूमौ छिन्नमूलाविव द्रुमौ|| ४९|| SP0620501: अथ निर्ययतुस्तत्र कामोपहतचेतसोः| SP0620502: आत्मानौ सह शुक्रेण तयोर्दानवमुख्ययोः|| ५०|| SP0620511: तौ तदा निर्गतौ तत्र तयोर्जीवौ दुरात्मनोः| SP0620512: बलिनौ चारुसर्वाङ्गौ बालावाशु बभूवतुः|| ५१|| SP0620521: एकस्तत्राब्रवीद्बालः सुम्भो ऽहं द्विषतामिति| SP0620522: निसुम्भो ऽप्यहमन्यस्तु बालस्तत्रावदत्तदा|| ५२|| SP0620531: अथ विन्ध्यः समासाद्य बालौ तावमितद्युती| SP0620532: आदिदेशात्मनः पत्नीं पाहि त्वं बालकाविति|| ५३|| SP0620541: ववृधाते ऽथ तौ तत्र दानवेन्द्रसुतावुभौ| SP0620542: कृष्णपक्षक्षये यद्वद्युगपच्छशिसागरौ|| ५४|| SP0620551: बुद्ध्वा तौ च तदा जन्म दानवाभ्यामरिंदमौ| SP0620552: तपश्चेरतुरत्युग्रं पर्णाम्बुपवनाशनौ|| ५५|| SP0620561: तपसाराधितस्ताभ्यां तत्रागत्याब्रवीत्प्रभुः| SP0620562: तुष्टो ऽस्मि युवयोः पुत्रौ वरं किं वा ददाम्यहम्|| ५६|| SP0620571: वव्राते तौ वरं वीरावजय्यावध्यतां सदा| SP0620572: प्रार्थनां तां तयोः श्रुत्वा प्रत्युवाच पितामहः|| ५७|| SP0620581: अवश्यं युवयोरेष्यं मरणं येन केनचित्| SP0620582: सुरेभ्यो ऽन्यत्र दैत्येन्द्रावमरत्वं न विद्यते|| ५८|| SP0620591: इत्युक्तवन्तं ब्रह्माणं वव्राते दानवौ वरम्| SP0620592: उभावपि सुनिश्चिन्त्य सम्प्रहृष्टतनूरुहौ|| ५९|| SP0620601: जगन्मातैव या कन्या विना तस्याः पितामह| SP0620602: मा भूतामावयोर्देव सदा मृत्युपराजयौ|| ६०|| SP0620611: एवमस्त्विति तौ प्रोच्य दैत्येन्द्रतनयावुभौ| SP0620612: विश्वस्य जगतः स्रष्टा तत्रैवान्तरधीयत|| ६१|| SP0620621: अथ तौ तपसस्तीव्राद्विरम्य कृतमङ्गलौ| SP0620622: मौलिनौ बद्धकेयूरौ हाराङ्गदविभूषितौ|| ६२|| SP0620631: हरिचन्दनदिग्धाङ्गौ पीतकौशेयवाससौ| SP0620632: विन्ध्यप्रस्थेषु रम्येषु चेरतुर्दानवोत्तमौ|| ६३|| SP0620641: पितामहाद्वरप्राप्तिं श्रुत्वा सुम्भनिसुम्भयोः| SP0620642: आजग्मुर्दानवा हृष्टाः पातालतलवासिनः|| ६४|| SP0620651: शम्भुर्मयो घनः केशिर्नरको नमुचिर्द्रुमः| SP0620652: अन्ये च कोटिशो दृप्ता हतशेषाः सुरद्विषः|| ६५|| SP0620661: विन्ध्यप्रस्थे निषेदुस्ते समेताः सर्वदानवाः| SP0620662: नानाद्रुमलतागुल्मविकीर्णकुसुमोत्करे|| ६६|| SP0620671: धन्विनो बद्धनिस्त्रिंशाश्चित्राभरणभूषिताः| SP0620672: सेन्द्रचापास्तडित्वन्तो नभसीव बलाहकाः|| ६७|| SP0620681: अथोवाच मयस्तत्र दानवो दानवोत्तमौ| SP0620682: पितृभ्यां युवयोर्भुक्तं त्रैलोक्यमखिलं पुरा|| ६८|| SP0620691: युवाभ्यामधुना दैत्यौ कस्मान्नादीयते पुनः| SP0620692: समेतानमरान्सर्वान्निर्जित्य रणमूर्धनि|| ६९|| SP0620701: ये सहाया हि वां पित्रोर्बभूवुः सुरविद्विषः| SP0620702: त एवामी बलोन्मत्ताः सहाया युवयोर्युधि|| ७०|| SP0620711: इत्युक्तवति दैत्येन्द्रे मये सुम्भो महासुरः| SP0620712: निसुम्भस्य मुखं प्रेक्ष्य वाक्यमित्थं तदाब्रवीत्|| ७१|| SP0620721: भूर्लोकमखिलं दैत्या युष्माभिः सह साम्प्रतम्| SP0620722: संविभज्य सुरान्सर्वाञ्जेष्यामो रणमूर्धनि|| ७२|| SP0620731: जम्बूद्वीपं स्वयं सो ऽथ जग्राहासुरसत्तमः| SP0620732: शाकद्वीपं निसुम्भाय ददौ भ्रात्रे कनीयसे|| ७३|| SP0620741: शाल्मलिद्वीपगोमेदौ दानवेभ्यो ददौ प्रभुः| SP0620742: क्रौञ्चद्वीपकुशद्वीपौ दैत्येभ्यः प्रददौ च सः| SP0620743: दैत्येन्द्रः पुष्करद्वीपं भार्गवाय न्यवेदयत्|| ७४|| SP0620751: एवं प्रतिविभज्याशु भूर्लोकमखिलं तदा| SP0620752: इज्याञ्जलिनमस्कारान्यज्ञान्सर्वाश्च सत्क्रियाः| SP0620753: आच्छिद्य देवतेभ्यस्ते जगृहुर्दैत्यदानवाः|| ७५|| SP0620761: बभूवाथ ततो यज्ञः कश्यपस्य महात्मनः| SP0620762: आगत्य तं तदा यज्ञं ममृदुः सुरशत्रवः|| ७६|| SP0620771: आधिपत्यं हि नः कृत्स्ने भूर्लोके कश्यपाधुना| SP0620772: सर्वावस्थासु यज्ञे ऽस्मिन्नस्मांस्त्वं यष्टुमर्हसि|| ७७|| SP0620781: एवमुक्तस्ततो दैत्यैर्मारीचः कश्यपस्तदा| SP0620782: गम्भीरमर्थवद्वाक्यमुवाचेत्थं स्मयन्निव|| ७८|| SP0620791: त्रैलोक्यमात्मनः कृत्वा जित्वा सर्वामरान्रणे| SP0620792: यज्ञभागांस्ततो दैत्याः सर्वानादातुमर्हथ|| ७९|| SP0620801: एवमुक्तास्तदा तेन दैत्यदानवसत्तमाः| SP0620802: बलं सर्वं समानाय्य कृत्वा संग्रामिकीः क्रियाः|| ८०|| SP0620811: प्रशस्तेषु कृताचारा मुहूर्तर्क्षदिनेषु ते| SP0620812: रथैर्नागैस्तुरंगैश्च निर्ययुर्दैत्यदानवाः|| ८१|| SP0620821: पृष्ठतः पुरतः सम्यक्पार्श्वयोरुभयोरपि| SP0620822: विधाय रक्षां संयत्ता ययुर्देवाञ्जिगीषवः|| ८२|| SP0620831: तेषामागमनं ज्ञात्वा द्विषतां पाकशासनः| SP0620832: संहतानां सुसंयत्तो युधा नाकं जिगीषताम्|| ८३|| SP0620841: विधिं विधाय स्वपुरे समस्तं दौर्गकर्मिकम्| SP0620842: पुण्येषु तिथिनक्षत्रमुहूर्तकरणेषु सः|| ८४|| SP0620851: मुनीन्विधिवदभ्यर्च्य नमस्कृत्वा पिनाकिने| SP0620852: सार्धं सुरगणैः सर्वैर्निर्ययौ कृतमङ्गलः|| ८५|| SP0620861: हिमवच्छिखराकारं चतुर्दन्तमनेकपम्| SP0620862: आरुह्यैरावतं शश्वन्मदतोयौघवर्षिणम्|| ८६|| SP0620871: महता हेमदण्डेन रत्नांशुपरिवेषिणा| SP0620872: उच्छ्रितेनातपत्रेण ध्रियमाणेन भास्वता|| ८७|| SP0620881: वीज्यमानः शरच्चन्द्रकिरणोत्करनिर्मलैः| SP0620882: चामरै रत्नदण्डांशुसमूहखचितोदरैः|| ८८|| SP0620891: आशीभिर्जयशब्दैश्च मुनिभिः परिवर्धितः| SP0620892: अभितः स्तूयमानश्च सूतमागधवन्दिभिः|| ८९|| SP0620901: अथावकाशे विस्तीर्णे समे पादपवर्जिते| SP0620902: रचयामास देवानां पद्मव्यूहं बृहस्पतिः|| ९०|| SP0620911: मरुद्भिः सहितं कृत्वा कर्णिकायां शतक्रतुम्| SP0620912: पत्रेषु च वसून्रुद्रानादित्यांश्च न्यवेशयत्|| ९१|| SP0620921: केसरेषु यमं कालं कुबेरवरुणावपि| SP0620922: अनन्तं सहितं नागैर्नाले गुरुरकल्पयत्|| ९२|| SP0620931: देवानन्यान्समेतांश्च रक्षोगन्धर्वसेनया| SP0620932: पुरःसरान्स पद्मस्य परितः पर्यकल्पयत्|| ९३|| SP0620941: अथ दानवतूर्याणां शब्दं श्रुत्वा दिवौकसः| SP0620942: आजघ्नुर्मुदिता भेरीर्नेदुर्नादांश्च सङ्घशः|| ९४|| SP0620951: विमिश्रं तूर्यशब्देन श्रुत्वा नादं दिवौकसाम्| SP0620952: संयत्ताः सुतरां चक्रुः प्रयत्नं दानवेश्वराः|| ९५|| SP0620961: अथ ते दानवा दृष्ट्वा पद्मव्यूहं दिवौकसाम्| SP0620962: पप्रच्छुर्भार्गवं तत्र तद्भेदममितौजसः|| ९६|| SP0620971: स पृष्टो दानवश्रेष्ठैर्व्यूहभेदमनाकुलः| SP0620972: विचिन्त्य भार्गवो धीमानित्थमाहासुरांस्तदा|| ९७|| SP0620981: विकीर्णाः परितः सर्वे तुषारनिकरा इव| SP0620982: पद्मव्यूहं सुरेन्द्राणां हत सम्यक्सुरद्विषः|| ९८|| SP0620991: एवमुक्तास्ततो दैत्या भार्गवेण महात्मना| SP0620992: सिंहनादं विनद्याशु परितस्ते ऽभ्यसर्पत|| ९९|| SP0621001: ततो युद्धं समभवद्देवदानवसैन्ययोः| SP0621002: आयुधैर्विविधैस्तीक्ष्णैः परस्परमभिघ्नतोः|| १००|| SP0621011: सादिनः सादिभिः सार्धं नागा नागै रथा रथैः| SP0621012: पत्तयः पत्तिभिर्दृप्तैर्दृप्ताः संयुयुधुर्युधि|| १०१|| SP0621021: केचिद्विभिन्ना नाराचैश्छिन्नाः केचित्परश्वधैः| SP0621022: निपेतुर्व्यसवो योधाः सेनयोरुभयोरपि|| १०२|| SP0621031: छिन्धि भिन्धि सहेदानीं तिष्ठ मूढ क्व गच्छसि| SP0621032: इति वाचः समुत्तस्थुर्युधि योधैरुदीरिताः|| १०३|| SP0621041: वसारुधिरसंसिक्तं तनुत्रावरणाचितम्| SP0621042: हतनागाश्वकलिलं तद्बभूव रणाजिरम्|| १०४|| SP0621051: अथ ते दानवैस्तत्र पीड्यमाना दिवौकसः| SP0621052: सव्रणा हतभूयिष्ठाः शक्रमेवाभिसंश्रिताः| SP0621053: अनन्तं नागमुख्याश्च कुबेरं यक्षराक्षसाः|| १०५|| SP0621061: भिन्ने व्यूहे ऽथ देवानां प्रहृष्टा दैत्यदानवाः| SP0621062: सिंहनादान्विनद्योच्चैस्तूर्याण्याहत्य भूयशः| SP0621063: अभ्यद्रवत संयत्ताः समरे पाकशासनम्|| १०६|| SP0621071: अथोत्थाप्य गजं शक्रो वज्रेण शतपर्वणा| SP0621072: चूर्णयामास संक्रुद्धो दैत्यदानववाहिनीम्|| १०७|| SP0621081: ददाह दानवानीकं परितः पाकशासनः| SP0621082: निदाघसमये दीप्तः शुष्ककक्षमिवानलः|| १०८|| SP0621091: अथ सुम्भः समभ्येत्य समरे शक्रमब्रवीत्| SP0621092: दृष्टो ऽस्यद्य मया शक्र न जीवन्प्रतियास्यसि|| १०९|| SP0621101: अथागत्य तदा ब्रह्मा प्राहेत्थं सुरसत्तमान्| SP0621102: न योद्धव्यं सुरा दैत्यैरवध्या वः सुरद्विषः|| ११०|| SP0621111: अन्तर्दधुस्ततस्तस्य वाक्यं श्रुत्वा दिवौकसः| SP0621112: विहाय समरं सर्वे क्षिप्रं सबलवाहनाः|| १११|| SP0621121: अथ दैत्याः सुसंहृष्टास्तूर्याण्याहत्य सर्वशः| SP0621122: नेदुरुच्चैर्वचश्चेदमूचुः समरशालिनः|| ११२|| SP0621131: तुरगखुरपुटान्तक्षुण्णरेण्वन्धकारे SP0621132: द्विरदरथनिनादत्रस्तपादातवृन्दे| SP0621133: विगतभयविषादः संयुगे सुम्भसिंहो SP0621134: जयति सुरविजेता वारिवाहोरुनादः|| ११३|| SP0621141: तदनु जयति दीर्घः पीनबाहूरुपादः SP0621142: पृथुरुचिरसुवक्षा उन्नतांसः सुनेत्रः| SP0621143: मृगपतिसमगामी तोयदध्वाननादी SP0621144: अमरवरविजेता दैत्यनाथो निसुम्भः|| ११४|| SP0629999: इति स्कन्दपुराणे द्विषष्टो ऽध्यायः||