Skandapurāṇa Adhyāya 52 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Bakker, Hans T., Peter C. Bisschop and Yuko Yokochi, eds. The Skandapurāṇa. Vol. IIB. Adhyāyas 31-52. The Vāhana and Naraka Cycles. Critical Edition with an Introduction & Annotated English Synopsis, in cooperation with Nina Mirnig and Judit Törzsök. Leiden/Boston: Brill, 2014. SP0520010: व्यास उवाच| SP0520011: के पुनस्तं न गच्छन्ति नरकं शुभकर्मिणः| SP0520012: पापेष्वभिरता देव एतदिच्छामि वेदितुम्|| १|| SP0520021: तथा स्त्रीणां च का युक्ता गतिः परमिका शुभा| SP0520022: केन कर्मविपाकेन एतदिच्छामि वेदितुम्|| २|| SP0520030: सनत्कुमार उवाच| SP0520031: न गच्छन्ति नरा ये तु नरकं तं सुदुःखिताः| SP0520032: पापकर्मण्यभिरतास्तानिमाञ्छृणु मानद|| ३|| SP0520041: नाग्निचिन्नरकं याति न सत्पुत्री न गोव्रती| SP0520042: नाश्वमेधेन यो यष्टा गोसहस्रप्रदो न च|| ४|| SP0520051: न च स्वाध्यायनित्यो यो रुद्रजापी च यो नरः| SP0520052: ब्राह्मणं तारयेद्यश्च आपदो मरणान्तिकात्|| ५|| SP0520061: तमेव व्याधितं दीनमकर्मण्यं तथैव च| SP0520062: शुश्रूषेद्यावदर्थेन युक्तो धर्मेण मानवः|| ६|| SP0520071: तथा गां चैव संभग्नां पतितां शक्तिवर्जिताम्| SP0520072: संरक्षति सुयुक्तात्मा स च तं नैव गच्छति|| ७|| SP0520081: महेशं यश्च भावेन परेण च समाधिना| SP0520082: भक्तः समर्चयेन्नित्यं स च तं नैव गच्छति|| ८|| SP0520091: ब्राह्मणास्तं न गच्छन्ति वेदवेदाङ्गपारगाः| SP0520092: षट्कर्मनिरता व्यास आत्मधर्मव्यवस्थिताः|| ९|| SP0520101: तपःशौचसमायुक्ता दयावन्तो दृढव्रताः| SP0520102: प्रतिग्रहनिवृत्ताश्च ईशभक्ताश्च ये द्विजाः|| १०|| SP0520111: क्षत्रिया ये च रक्षार्थं प्रजानां नित्यमुद्यताः| SP0520112: त्यजन्ति समरे प्राणान्न ते नरकगामिनः|| ११|| SP0520121: वैश्या वार्तासमायुक्ता न्यायधर्मव्यवस्थिताः| SP0520122: येषां वृत्तिरविच्छिन्ना देवब्राह्मणपूजने| SP0520123: नरकं ते न पश्यन्ति स्वर्गगास्ते प्रकीर्तिताः|| १२|| SP0520131: भक्ता वर्णत्रयं ये च शूद्रा दर्पविवर्जिताः| SP0520132: ब्राह्मणांश्च विशेषेण ये नित्यं समुपासते| SP0520133: न ते पश्यन्ति नरकान्सुगतिं च मृता ययुः|| १३|| SP0520141: चतुर्ष्वपि च वर्णेषु मनुजा भावतः शिवम्| SP0520142: शर्वार्पितक्रियावस्था भक्ता नित्यमनुव्रताः| SP0520143: न ते प्रयान्ति नरकान्प्राप्नुवन्ति परां गतिम्|| १४|| SP0520151: प्रासादं ये च वै कृत्वा देवदेवमुपासते| SP0520152: अन्यानपि पितॄंस्ते तु नरकादुद्धरन्त्युत|| १५|| SP0520161: खानिताः पुष्करिण्यश्च तडागानि ह्रदानि च| SP0520162: रोपितानि च षण्डानि ते ऽपि तानि न यान्ति हि|| १६|| SP0520171: परित्राणां द्विजातीनामन्येषां चैव दुःखिनाम्| SP0520172: नित्यं प्रकुर्वते ये च ते ऽपि तान्न व्रजन्ति हि|| १७|| SP0520181: अक्रोधनाश्च ये नित्यं देवब्राह्मणपूजकाः| SP0520182: नित्यं दानरताश्चैव न ते गच्छन्त्यधोगतिम्|| १८|| SP0520191: सत्याभिधानसंयुक्ता दुष्कृतारम्भवर्जिताः| SP0520192: स्वधर्मकरणे सक्ताः पश्यन्ति नरकान्न ते|| १९|| SP0520201: लिङ्गार्चनरतस्तस्मात्सर्वस्मात्परिमुच्यते| SP0520202: ध्यानी तु सर्वदा यो वै गणाञ्जपति वा शुचिः| SP0520203: योगी तु सर्वपापानि कुर्वन्नपि न लिप्यते|| २०|| SP0520211: स्त्रीणां तु परमो देवः पतिर्भवति सर्वदा| SP0520212: तस्मान्नान्यत्प्रपश्यन्ति ये केचिद्धर्मचिन्तकाः|| २१|| SP0520221: कर्मणा मनसा वाचा यद्ददाति जुहोति वा| SP0520222: परित्यज्य पतिं नारी न तस्य फलमश्नुते|| २२|| SP0520231: पतिशुश्रूषणे रक्ता त्रिविधेनापि कर्मणा| SP0520232: पतौ मृते ऽपि मनसा नान्यमिच्छति या नरम्|| २३|| SP0520241: करोति पुण्यं यच्चापि पत्युः सर्वं प्रयच्छति| SP0520242: सा नारी नरकान्सर्वान्मनसापि न गच्छति|| २४|| SP0520251: संसारं नैव सा घोरं सर्वं संप्रतिपद्यते| SP0520252: अन्यासां तु न संदेहो नरकं प्रति सुव्रत|| २५|| SP0520260: सनत्कुमार उवाच| SP0520261: सुकेशं त्वनुगृह्यैवं काष्ठकूटाश्रमं गतः| SP0520262: अनुजग्राह तं विप्रं काष्ठकूटं तपोधनम्|| २६|| SP0520270: व्यास उवाच| SP0520271: किं तपस्तस्य भगवन्ब्राह्मणस्य महात्मनः| SP0520272: कियता चैव कालेन वरं लेभे महेश्वरात्|| २७|| SP0520281: कस्य पुत्रः कस्य नप्ता किंनामा स च सत्तमः| SP0520282: एतदिच्छामि कथितं भगवन्विस्तराच्छुभम्|| २८|| SP0520290: सनत्कुमार उवाच| SP0520291: गौतमस्यान्वये विप्रो नाम्ना कृष्ण इति प्रभुः| SP0520292: तस्य पुत्रो ऽभवत्ख्यातो भूमन्युरिति नामतः| SP0520293: तस्य पत्न्यभवत्सुभ्रूरात्रेयी नामतो यशा|| २९|| SP0520301: स कदाचित्कृतोद्वाहो भूमन्युर्नाम गौतमः| SP0520302: नाविन्दत सुतं तस्या जरया चाभिसंवृतः|| ३०|| SP0520311: स भार्यामाह दुःखार्त इदं वचनकोविदः| SP0520312: पुत्रेणेच्छन्ति लोकांश्च अनृणाश्च भवन्त्युत| SP0520313: जरापरिणतश्चाहं न च मे दृश्यते सुतः|| ३१|| SP0520321: सा त्वं कंचित्सगोत्रं मे अनुज्ञाता मया शुभे| SP0520322: अभिपद्यस्व पुत्रार्थं याचे त्वां प्राञ्जलिर्नतः|| ३२|| SP0520330: यशोवाच| SP0520331: न मया श्रुतमेतत्ते तथा नोक्तं त्वयानघ| SP0520332: मादृशी कथमेतद्धि मनसाप्यभिचिन्तयेत्|| ३३|| SP0520341: अत्रीणां तु कुले जाता गौतमं कुलमागता| SP0520342: मद्विधा कथमेतद्धि कुर्यात्सद्भिर्विगर्हितम्|| ३४|| SP0520351: तपसा धनमन्विच्छेज्जीवितानि सुखानि च| SP0520352: पुत्रान्कुलं च लोकांश्च तपः कुरु महामुने|| ३५|| SP0520361: तपसा हि सुतो लब्धः शक्तिना स पराशरः| SP0520362: और्वश्च तपसा स्वेन च्यवनेन महामुनिः|| ३६|| SP0520371: वसिष्ठेन कपिञ्जल्यामिन्द्रप्रमतिरेव च| SP0520372: शिलादो ऽजनयच्चैव तपसा नन्दिनं सुतम्|| ३७|| SP0520381: तथा भवानपि तपः करोतु सुसमाधिना| SP0520382: लप्स्यसे त्वं सुतं श्रेष्ठं महायोगबलान्वितम्|| ३८|| SP0520391: मां हि दृष्ट्वा पुरा प्राह अत्रिर्ब्रह्मसुतः स्वयम्| SP0520392: सत्पुत्रिणी भवित्रीयं न मिथ्या तद्भविष्यति|| ३९|| SP0520401: तपो ऽस्ति मयि यत्किंचित्त्वत्प्रसादात्समार्जितम्| SP0520402: तेन स्वेन च संयुक्तो रुद्रमाराधय प्रभो|| ४०|| SP0520410: सनत्कुमार उवाच| SP0520411: एवमुक्तः स तेजस्वी ह्रिया परमया युतः| SP0520412: तथैव समनुज्ञातो रुद्रं शरणमेयिवान्|| ४१|| SP0520421: त्वरितं स समागम्य नर्मदां हर्षसंयुतः| SP0520422: तस्यास्तीरे तमुद्दिश्य तस्थौ वाय्वशनः समाः|| ४२|| SP0520431: स तु नैवाभवद्विप्रः कृतार्थस्तेन कर्मणा| SP0520432: ततः स दुःखितो भूयः प्राणायामेन तस्थिवान्|| ४३|| SP0520441: वर्षमेकं ततो देवस्तमुवाच तदा विभुः| SP0520442: किमेवं क्लिश्यसे विप्र न तवास्ति सुतः क्वचित्| SP0520443: व्यर्थस्ते ऽयं श्रमस्तावन्नास्ति पुत्रस्तवानघ|| ४४|| SP0520451: स एवमुक्तो निर्विण्णो निराशः पुत्रजन्मनि| SP0520452: चिन्तयामास मरणं न गन्तुं स्वं गृहं प्रति|| ४५|| SP0520461: स काष्ठकूटं संभृत्य गृहीत्वाग्निं च दुःखितः| SP0520462: विलप्य बहु दुःखार्त आत्मानं दग्धुमैच्छत|| ४६|| SP0520471: तस्य रुद्रः समालक्ष्य व्यवसायं सुदुष्करम्| SP0520472: पुत्र पुत्रेति गम्भीरमदृश्य इदमब्रवीत्|| ४७|| SP0520481: पुत्रस्ते भविता गच्छ मा च त्वं साहसं कृथाः| SP0520482: काष्ठकूटेति नाम्ना च भविष्यति स ते सुतः|| ४८|| SP0520491: अथ हृष्टमना विप्रो गत्वा पत्न्यां महातपाः| SP0520492: उत्पादयामास सुतं काष्ठकूटं महामुनिम्|| ४९|| SP0520501: संस्कृतस्य तु कालेन तस्य बुद्धिरभूत्ततः| SP0520502: अशक्तो ऽयं वृद्धभावान्मामध्यापयितुं पिता| SP0520503: तस्माद्यास्यामि चामन्त्र्य पितरं वेदकारणात्|| ५०|| SP0520511: स गत्वा मातरं विप्रः पितरं च महायशाः| SP0520512: प्रणम्य शिरसा पादौ इदं वचनमब्रवीत्|| ५१|| SP0520521: सुतो युवाभ्यां जातो ऽहं धर्महेतोर्न कामतः| SP0520522: आवां तारयिता चायं तथैव च पितामहान्| SP0520523: संततिश्चाप्यविच्छिन्ना भविष्यति न संशयः|| ५२|| SP0520531: इष्टांश्च लोकान्प्राप्स्याव सुपुत्रेणेति सर्वथा| SP0520532: पितॄणां चानृणौ स्याव इत्यभीष्टो ऽस्मि वां सुतः|| ५३|| SP0520541: सो ऽहं धर्मेष्वकुशलः श्रुतिस्मृतिबहिष्कृतः| SP0520542: कर्ताज्ञानेन तत्कर्म पितरो येन दुःखिताः| SP0520543: भवांश्च निरये मग्नश्चिरं वत्स्यति दुष्टवत्|| ५४|| SP0520551: भवान्नाध्यापने शक्तः स्थविरत्वाद्दिने दिने| SP0520552: पुत्रस्नेहाच्च कार्यं च न सम्यग्धारयिष्यति|| ५५|| SP0520561: इयं च जननी नित्यमेकपुत्रो ऽयमित्युत| SP0520562: त्वया सम्यक्प्रशास्यन्तं नैव मामनुमंस्यते|| ५६|| SP0520571: सो ऽहमन्यं तपोनित्यं निरनुक्रोशमेव च| SP0520572: आचार्यं मतिसंपन्नं संश्रयामीति मे मतिः|| ५७|| SP0520581: न चापि तद्व्यवस्यामि युवयोर्नास्ति कश्चन| SP0520582: कुर्याद्यः पादयोर्नित्यं शुश्रूषामिति चिन्तयन्|| ५८|| SP0520591: न च नाख्येयमेतद्वां मया चिन्ता कृता शुभम्| SP0520592: अशुभं वापि यत्किंचिद्युवां मम गतिः परा|| ५९|| SP0520601: एवमुक्तौ तु पितरौ पुत्रेण सुमहात्मना| SP0520602: साश्रुपूर्णेक्षणौ स्थित्वा मुहूर्तमिदमूचतुः| SP0520603: आघ्रायालिङ्ग्य संमार्ज्य स्नेहात्प्रियसुतं तदा|| ६०|| SP0520610: भूमन्युरुवाच| SP0520611: शुश्रूषा द्विविधा पुत्र पितॄणां धर्मसंहिता| SP0520612: या कर्तव्या प्रयत्नेन सुतेन सुमहात्मना|| ६१|| SP0520621: ऐहिकी चाङ्गशुश्रूषा परत्रे या च धर्मदा| SP0520622: यया तरन्ति पितरः कामांश्चाप्नुवते ऽक्षयान्| SP0520623: तत्रैहिकं न नो हीष्टं यथा ह्यामुष्मिकं कृतम्|| ६२|| SP0520631: तस्मादामुष्मिकं कर्म यद्भवेत्तत्समाचर| SP0520632: गच्छाधीष्व श्रुतिं चैव स्मृतिं चैव सुकर्मणाम्|| ६३|| SP0520640: मातोवाच| SP0520641: यथा ते ऽयं पिता पुत्र ब्रवीति विदितात्मवान्| SP0520642: तथा कुरु यथा देवो वरदस्ते भवेद्भवः|| ६४|| SP0520651: उदरेण मया दुःखं धारितस्त्वं महामते| SP0520652: तथा च बहुभिः क्लेशैर्लब्धः सर्वार्थसिद्धये|| ६५|| SP0520661: पित्रा च तपसोग्रेण प्राणांस्त्यक्त्वातिदुस्त्यजान्| SP0520662: महादेवाद्भवांल् लब्धस्तस्य युक्तं समाचर|| ६६|| SP0520671: यथा तुष्टौ त्वया पुत्र जीवौ जीवेन संगतौ| SP0520672: आवामुभावपि स्याव तथा सम्यक्त्वमाचर|| ६७|| SP0520680: सनत्कुमार उवाच| SP0520681: ततस्ताभ्यामनुज्ञात आघ्रातश्चैव मूर्धनि| SP0520682: प्रदक्षिणमुपावृत्य जगाम सुकृतात्मवान्|| ६८|| SP0520691: स जगाम तदा ताभ्यां विसृष्टश्च्यवनं प्रति| SP0520692: ऋग्यजुर्भ्यामिवोत्सृष्टा स्वाहुतिर्वरुणं प्रति|| ६९|| SP0520701: स तमासाद्य तुष्टेन तेनासौ सफलः कृतः| SP0520702: भागधेयमिव प्राप्य देवैर्मन्त्रपुरःसरः|| ७०|| SP0520711: अथ पुत्रे गते तस्मिन्पिता दिष्टान्तमेयिवान्| SP0520712: काष्ठकूटस्ततो ऽभ्येत्य कृतविद्यः सुधार्मिकः| SP0520713: अपश्यन्मातरं दीनामतोयामिव पद्मिनीम्|| ७१|| SP0520721: सोमहीनामिव निशामाज्ञाहीनामिव श्रियम्| SP0520722: रुदन्तीं सास्रुपूर्णाक्षीं विलपन्तीं सुदुःखिताम्|| ७२|| SP0520731: काष्ठकूटस्तु तां दृष्ट्वा दुःखेन समभिप्लुताम्| SP0520732: जयन्त इव पौलोमीं शक्रे नष्टे ऽब्रवीदिदम्|| ७३|| SP0520740: काष्ठकूट उवाच| SP0520741: श्रुतं मयेदं प्रागेव कृता चैवोदकक्रिया| SP0520742: मा शोके मन आधत्स्व एष धर्मः सनातनः|| ७४|| SP0520751: देवानां च ऋषीणां च योगिनां च महात्मनाम्| SP0520752: मर्त्यानां किं पुनर्मातर्मा रुदस्त्वं तपोधने|| ७५|| SP0520761: अहं तेनात्मनात्मा वै सृष्टः स्वेनैव तेजसा| SP0520762: पश्य मां कृतकृत्यं त्वं गायत्रीवात्मनः सुतम्|| ७६|| SP0520771: वेदाः सर्वे मयाधीताः साङ्गोपाङ्गाः सविस्तराः| SP0520772: तथोपवेदाः सर्वे च अध्यात्मं चैव कृत्स्नशः|| ७७|| SP0520781: यत्किंचित्पुरुषैर्ज्ञेयं तत्सर्वं ज्ञातमेव च| SP0520782: श्रोतव्यं च श्रुतं सर्वमुपास्ताश्चापि योगिनः|| ७८|| SP0520791: अनेन हि प्रकर्षेण हृष्यमाणा मुदान्विता| SP0520792: मां पालय महासत्त्वे गायत्रीव सदा क्रतुम्|| ७९|| SP0520800: सनत्कुमार उवाच| SP0520801: श्रुत्वा तस्य वचस्तद्वै माता तथ्यं महात्मनः| SP0520802: भूयस्तरेण दुःखेन रुदन्ती तमुवाच ह|| ८०|| SP0520810: यशोवाच| SP0520811: पुत्र नैतद्धि दुःखं मे मृतः स इति संमतः| SP0520812: सर्वेषां प्राणिनामेतद्विहितं मर्त्यधर्मिणाम्|| ८१|| SP0520821: स चापि कृतकृत्यश्च महात्मा तपसान्वितः| SP0520822: न तस्य शोच्यमस्माभिरिह किंचिद्धि विद्यते|| ८२|| SP0520831: आत्मानं पुत्र शोचामि याहं तेन विना कृता| SP0520832: तमेवानुमृता नास्मि तवागमनकांक्षिणी|| ८३|| SP0520841: नार्था न भोगस्वजना न पुत्रा नैव बान्धवाः| SP0520842: योषितां तत्र तिष्ठन्ति पतिर्यत्रावतिष्ठते|| ८४|| SP0520851: पतिर्यदि ततः सर्वं नास्ति किंचित्पतिं विना| SP0520852: सर्वं हि दुःखदं तासां यासां नास्ति पतिः सुत|| ८५|| SP0520861: इदं च मे पुनर्दुःखं यत्त्वां तेन सहाद्य वै| SP0520862: नाभिनन्दामि संहृष्टा सुखं श्रीरिव विष्णुना|| ८६|| SP0520871: बहुशः स हि मामाह काष्ठकूट इहेष्यति| SP0520872: कृतविद्यस्ततस्तस्य वरयिष्ये स्नुषां शुभाम्|| ८७|| SP0520881: काश्यपस्योदलस्येयं सुता गुणवती भृशम्| SP0520882: तामहं वरयिष्यामि काष्ठकूटस्य सुव्रताम्|| ८८|| SP0520891: कदा द्रक्ष्यामि तं पुत्रं सपत्नीकं दृढव्रतम्| SP0520892: अग्निं चैवाहरिष्यामि पत्नीरत्नं समीक्ष्य ह|| ८९|| SP0520901: पत्न्या कदाहं पुत्रस्य पादग्रहणतोषितः| SP0520902: शुभानि मनसा वाचा विधास्यामि बहून्यपि|| ९०|| SP0520911: एवं मनोरथवतस्तस्य पुत्रवतस्तथा| SP0520912: प्रियपुत्रस्य नैवाभूदेतद्दहति मां सुत|| ९१|| SP0520921: मया त्वमुक्तः पूर्वं च गच्छन्वै तस्य सन्निधौ| SP0520922: जीवौ यथा त्वां पश्यावस्तन्न चैवाभवत्तथा|| ९२|| SP0520931: वज्रसारमयं मे ऽद्य हृदयं यन्न दीर्यते| SP0520932: या त्वां पश्यामि पुत्रेह विना तेनासती पुनः|| ९३|| SP0520940: सनत्कुमार उवाच| SP0520941: ततः सा कुररी यद्वद्विना पत्या महायशा| SP0520942: विलप्य बहुदुःखार्ता पपात धरणीतले|| ९४|| SP0520951: तां काष्ठकूटो दुःखार्तां पतितां गतजीविताम्| SP0520952: विसंज्ञामग्निना दग्ध्वा विललाप सुदुःखितः|| ९५|| SP0520961: हा तात मम दुर्बुद्धेरधर्मज्ञस्य चैव हि| SP0520962: क्व गतो ऽसि न मे ऽद्य त्वं सभार्यः संप्रभाषसे|| ९६|| SP0520971: ननु त्वयाहं निर्दिष्टो गच्छाधीष्वेति हृष्टवत्| SP0520972: सो ऽहमद्यागतो ऽधीत्वा कस्मान्मां नाभिभाषसे|| ९७|| SP0520981: ननु ते तपसा लब्धः परेण च समाधिना| SP0520982: पुत्रो ऽहं देवदेवाद्वै रुद्रात्किं नाभिभाषसे|| ९८|| SP0520991: किं मयापकृतं तात सहभार्यस्य ते ऽनघ| SP0520992: यन्मां सहाम्बयागत्वा दृढं नैवाभिनन्दसि|| ९९|| SP0521001: हा हतो ऽसि मयैकेन दुष्पुत्रेण दुरात्मना| SP0521002: अराजकमिदं मन्ये पितृघ्नं मां न हन्ति यत्|| १००|| SP0521011: एवं स विलपन्व्यास ऋषिभिर्बहुभिस्तथा| SP0521012: संस्थापितः समाश्वस्त अकरोदुदकक्रियाम्|| १०१|| SP0521021: इमां प्रतिज्ञां चक्रे स ऋषिमध्ये महातपाः| SP0521022: दुष्करां सर्वभूतानामुपस्पृश्य कृताञ्जलिः|| १०२|| SP0521031: अद्यप्रभृति नोच्छ्वासं करिष्यामि कथंचन| SP0521032: वायवो मे शरीरस्था न चरिष्यन्ति कर्हिचित्|| १०३|| SP0521041: निमेषोन्मेषरहित एकपादोर्ध्वबाहुमान्| SP0521042: काष्ठलोष्टोपलीभूतो भविष्यामि न संशयः|| १०४|| SP0521051: रुद्रं द्रष्टास्मि यावच्च यावच्च पितरं तथा| SP0521052: सभार्यं संप्रपश्यामि तावद्व्रतमिदं मम|| १०५|| SP0521060: सनत्कुमार उवाच| SP0521061: ततः स ऋषिभिस्तैस्तु दृश्यमानो महातपाः| SP0521062: महेश्वरं सदा ध्यायंस्तत्रैव समतिष्ठत|| १०६|| SP0521071: तस्य देवस्थितस्यैवं पितृभक्त्या तयापि च| SP0521072: तुष्टो दिने ऽष्टमे व्यास स्वयमेवाह शंकरः|| १०७|| SP0521080: देव उवाच| SP0521081: काष्ठकूट प्रयच्छामि दिव्यं चक्षुस्तवानघ| SP0521082: पश्य मां त्वं सुविश्रब्धमदृश्यं योगिनामपि|| १०८|| SP0521091: ब्रूहि पुत्र वरं चापि यस्ते हृदि समाहितः| SP0521092: प्रदास्यामि न संदेहः सुनिश्चिन्त्याभिधत्स्व तत्|| १०९|| SP0521100: सनत्कुमार उवाच| SP0521101: ततः स दृष्ट्वा देवेशमुद्यन्तमिव भास्करम्| SP0521102: पपात पादयोर्हृष्ट इदं चोवाच सुस्वरम्|| ११०|| SP0521110: काष्ठकूट उवाच| SP0521111: भगवन्मृत्युना माता पिता च मम योजितौ| SP0521112: जीवेतां तावुभौ देव एतदिच्छाम्यहं वरम्|| १११|| SP0521120: देव उवाच| SP0521121: तौ मृतौ नरकं घोरं प्रपन्नौ मृत्युनार्दितौ| SP0521122: न तौ शक्यौ पुनर्जीवौ कर्तुमन्यद्वृणीष्व मे|| ११२|| SP0521130: काष्ठकूट उवाच| SP0521131: नाहमन्यं वरं देव कथंचिदपि कामये| SP0521132: पित्र्यर्थो ऽयं समारम्भस्तद्विधत्स्व नमस्तव|| ११३|| SP0521140: देव उवाच| SP0521141: शरीरं चेन्मृतस्यास्ति तच्छक्यं जीवितेन हि| SP0521142: संयोजयितुमन्येन दग्धस्यैतन्न विद्यते| SP0521143: तयोर्न चास्ति वै देहो न चान्यत्कारणं तथा|| ११४|| SP0521151: यादृक्च स पिता तुभ्यं भवांस्तादृक्शरीरतः| SP0521152: शरीरमेतत्त्वं यच्छ ततो जीवौ भविष्यतः|| ११५|| SP0521160: काष्ठकूट उवाच| SP0521161: तुभ्यं वै नास्त्यकर्तव्यं कर्तव्यं चेन्मतं भवेत्| SP0521162: शरीरं च विना दृष्टमुत्थानं वै ध्रुवस्य तु|| ११६|| SP0521171: न चापि मे शरीरेण विना ताभ्यां रतिः प्रभो| SP0521172: तस्माद्गृहाण देवेश शरीरं यदि मन्यसे|| ११७|| SP0521181: तस्यैवेदं महादेव अङ्गादङ्गं समुत्थितम्| SP0521182: तस्माद्यच्छस्व देवेश न मे कार्यमनेन हि|| ११८|| SP0521190: सनत्कुमार उवाच| SP0521191: ततः स भगवान्देवः प्रहस्य ऋषिसत्तमम्| SP0521192: प्रीतात्मा प्रत्युवाचेदं युयुक्षुस्तं शुभेन हि|| ११९|| SP0521200: देव उवाच| SP0521201: परीक्षेयं कृता पुत्र तव धर्मभृतां वर| SP0521202: पितृभक्त्यानया सम्यक्तुष्टो ऽस्मि शृणु मे वचः|| १२०|| SP0521211: अक्षयश्चाव्ययश्चापि अजरो मृत्युवर्जितः| SP0521212: ऐश्वर्येण च संयुक्तः प्रियो मे गणपो भवान्|| १२१|| SP0521221: काष्ठकूट इति ख्यातः सर्वयोगबलान्वितः| SP0521222: कामगेन विमानेन मत्कृतेन चरिष्यसि|| १२२|| SP0521231: इमे च ऋषयः सर्वे आश्रमे ऽस्मिंस्तपस्विनः| SP0521232: तवैवानुचरा भूत्वा भविष्यन्ति गणेश्वराः|| १२३|| SP0521241: अक्षयाश्चाव्ययाश्चैव महायोगबलान्विताः| SP0521242: ऐश्वर्येण च तुल्यास्ते भविष्यन्ति न संशयः|| १२४|| SP0521251: अयं च ते पिता पुत्र भूमन्युः सह भार्यया| SP0521252: तवैवानुचरो भूत्वा त्वत्समः समुपस्थितः|| १२५|| SP0521261: श्वेतं च पर्वतं दिव्यं विमानैरुपशोभितम्| SP0521262: कामगं संप्रयच्छामि निवासं स्वर्गसंनिभम्|| १२६|| SP0521270: सनत्कुमार उवाच| SP0521271: ततः स भगवान्देव अनुगृह्य तमूर्जितम्| SP0521272: जगाम मन्दरं भूयः सो ऽपीष्टं देशमाव्रजत्|| १२७|| SP0521281: यावद्देवी तपोयुक्ता पितुः शिखरमाश्रिता| SP0521282: तावद्देव इदं सर्वं चकार कथितं हि यत्|| १२८|| SP0521291: य इमं देवदेवस्य चेष्टितं शृणुयान्नरः| SP0521292: श्रावयीत द्विजान्वापि न स दुर्गतिमाप्नुयात्|| १२९|| SP0521301: नित्यमेतदधीयंश्च शुचिः प्रयतमानसः| SP0521302: देहभेदं समासाद्य रुद्रलोकं स गच्छति|| १३०|| SP0521311: य इमं बहुपापनाशनं परमं रुद्रसमीपयोजनम्| SP0521312: पठते ऽतिगुणप्रसाधनं स मृतो याति न दीनसंभवम्|| १३१|| SP0529999: इति स्कन्दपुराणे द्विपञ्चाशो ऽध्यायः||