Skandapurāṇa Adhyāya 22 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0220010: सनत्कुमार उवाच| SP0220011: ततस्तु देवदेवेशो भक्त्या परमया युतम्| SP0220012: अश्रुपूर्णेक्षणं दीनं पादयोः शिरसा नतम्|| १|| SP0220021: कराभ्यां सुसुखाभ्यां तु संगृह्य परमार्तिहा| SP0220022: उत्थाप्य नयने सोमः अश्रुपूर्णे ममार्ज ह|| २|| SP0220031: उवाच चैनं तुष्टात्मा वचसाप्याययन्निव| SP0220032: निरीक्ष्य गणपान्सर्वान्देव्या सह तदा प्रभुः|| ३|| SP0220040: देव उवाच| SP0220041: जाने भक्तिं तव मयि जाने चार्तिं तवानघ| SP0220042: तस्य सर्वस्य शैलादे उदर्कं संनिशामय|| ४|| SP0220051: अमरो जरया त्यक्तो नित्यं दुःखविवर्जितः| SP0220052: अक्षयश्चाव्ययश्चैव सपिता ससुहृज्जनः|| ५|| SP0220061: ममेष्टो गणपश्चैव मद्वीर्यो मत्पराक्रमः| SP0220062: इष्टो मम सदा चैव मम पार्श्वगतः सदा| SP0220063: मद्रूपश्चैव भविता महायोगबलान्वितः|| ६|| SP0220071: ऋद्धिमच्चैव ते द्वीपं क्षीरोदममृताकरम्| SP0220072: संवासं सम्प्रयच्छामि तत्र रंस्यसि सर्वदा|| ७|| SP0220081: कुशेशयमयीं मालामवमुच्यात्मनस्ततः| SP0220082: आबबन्ध महातेजा नन्दिने दिव्यरूपिणीम्|| ८|| SP0220091: स तया मालया नन्दी बभौ कण्ठावसक्तया| SP0220092: त्र्यक्षो दशभुजः श्रीमान्द्वितीय इव शंकरः|| ९|| SP0220101: ततस्तं वै समादाय हस्तेन भगवान्हरः| SP0220102: उवाच ब्रूहि किं ते ऽद्य ददानि वरमुत्तमम्|| १०|| SP0220111: आश्रमश्चायमत्यर्थं तपसा तव भावितः| SP0220112: जप्येश्वर इति ख्यातो मम गुह्यो भविष्यति|| ११|| SP0220121: समन्ताद्योजनं क्षेत्रं दिव्यं देवगणैर्वृतम्| SP0220122: सिद्धचारणसंकीर्णमप्सरोगणसेवितम्| SP0220123: सिद्धिक्षेत्रं परं गुह्यं भविष्यति न संशयः|| १२|| SP0220131: कर्मणा मनसा वाचा यत्किंचित्कुरुते नरः| SP0220132: शुभं वाप्यशुभं वात्र सर्वं भवितृ तच्छुभम्|| १३|| SP0220141: जाप्यं मानसं तुल्यं वै रुद्राणां तद्भविष्यति| SP0220142: यत्र तत्र मृता मर्त्या यास्यन्ति तव लोकताम्|| १४|| SP0220151: ततो जटास्रुतं वारि गृहीत्वा हारनिर्मलम्| SP0220152: उक्त्वा नदी भवस्वेति विससर्ज महातपाः|| १५|| SP0220161: सा ततो दिव्यतोया च पुण्या मणिजला शुभा| SP0220162: हंसकारण्डवाकीर्णा चक्रवाकोपशोभिता| SP0220163: पद्मोत्पलवनोपेता प्रावर्तत महानदी|| १६|| SP0220171: स्त्रीरूपधारिणी चैव प्राञ्जलिः शिरसा नता| SP0220172: पद्मोत्पलदलाभाक्षी महादेवमुपस्थिता|| १७|| SP0220181: तामुवाच ततो देवो नदीं स्वयमुपस्थिताम्| SP0220182: यस्माज्जटोदकाद्देवि प्रवृत्ता त्वं शुभानने| SP0220183: तस्माज्जटोदा नाम्ना त्वं भविष्यसि सरिद्वरा|| १८|| SP0220191: त्वयि स्नानं तु यः कुर्याच्छुचिः प्रयतमानसः| SP0220192: सो ऽश्वमेधफलं प्राप्य रुद्रलोके महीयते|| १९|| SP0220200: सनत्कुमार उवाच| SP0220201: ततो देव्या महादेवो नन्दीश्वरमतिप्रभम्| SP0220202: पुत्रस्ते ऽयमिति प्रोच्य पादयोस्तं व्यनामयत्|| २०|| SP0220211: सा तमाघ्राय शिरसि पाणिभ्यां परिमार्जती| SP0220212: पुत्रप्रेम्णाभ्यषिञ्चत्तं स्रोतोभिः स्तनजैस्त्रिभिः| SP0220213: पयसा शङ्खगौरेण देवी देवं निरीक्षती|| २१|| SP0220221: तानि स्रोतांसि त्रीण्यस्याः स्रुतान्योघवती नदी| SP0220222: नदीं त्रिस्रोतसीं पुण्यां ततस्तामवदद्धरः|| २२|| SP0220231: त्रिस्रोतसं नदीं दृष्ट्वा वृषः परमहर्षितः| SP0220232: ननर्द नादात्तस्माच्च सरिदन्या ततो ऽभवत्|| २३|| SP0220241: यस्माद्वृषभनादेन प्रवृत्ता सा महानदी| SP0220242: तस्माड्ढित्किरिकां तां वै उवाच वृषभध्वजः|| २४|| SP0220251: जाम्बूनदमयं चित्रं स्वं देवः परमाद्भुतम्| SP0220252: मुकुटं चाबबन्धास्मै कुण्डले चामृतोद्भवे|| २५|| SP0220261: तं तथाभ्यर्चितं व्योम्नि दृष्ट्वा मेघः प्रभाकरः| SP0220262: देवोपवाह्यः सिषिचे सनादः सतडिद्गुणः|| २६|| SP0220271: तस्याभिषिक्तस्य तदा प्रवृत्ते स्रोतसी भृशम्| SP0220272: यस्मात्सुवर्णान्निःसृत्य नद्येका सम्प्रवर्तत| SP0220273: स्वर्णोदकेति नाम्ना तां महादेवो ऽभ्यभाषत|| २७|| SP0220281: जाम्बूनदमयाद्यस्माद्द्वितीया मुकुटाच्छुभात्| SP0220282: प्रावर्तत नदी पुण्या ऊचुर्जम्बूनदीति ताम्|| २८|| SP0220291: एतत्पञ्चनदं नाम जप्येश्वरसमीपगम्| SP0220292: व्याख्यातं फलमेतासां जटोदायां महात्मना|| २९|| SP0220301: तच्च पञ्चनदं दिव्यं देवं जप्येश्वरं च तम्| SP0220302: त्रिरात्रोपोषितो गत्वा स्नात्वाभ्यर्च्य च शूलिनम्|| ३०|| SP0220311: ब्राह्मणांश्च तर्पयित्वा यत्र तत्र मृतो नरः| SP0220312: नन्दीश्वरस्यानुचरः क्षीरोदनिलयो भवेत्|| ३१|| SP0220321: यस्तु जप्येश्वरे प्राणान्परित्यजति दुस्त्यजान्| SP0220322: नियमेनान्यथा वापि स मे गणपतिर्भवेत्|| ३२|| SP0220331: नन्दीश्वरसमो नित्यः शाश्वतः अक्षयो ऽव्ययः| SP0220332: मम पार्श्वादनपगः प्रियः संमत एव च|| ३३|| SP0220341: जप्येश्वरं पञ्चनदं च तद्वै यो मानवो ऽभ्येत्य जहाति देहम्| SP0220342: स मे सदा स्याद्गणपो वरिष्ठस्त्वया समः कान्तिवपुश्च नित्यम्|| ३४|| SP0229999: इति स्कन्दपुराणे द्वाविंशतिमो ऽध्यायः||