Skandapurāṇa Adhyāya 17 E-text generated on February 22, 2017 from the original TeX files of: Adriaensen, R., H.T. Bakker and H. Isaacson, eds. The Skandapurāṇa. Vol. I. Adhyāyas 1-25. Critically Edited with Prolegomena and English Synopsis. Groningen: Egbert Forsten, 1998. SP0170010: व्यास उवाच| SP0170011: कस्मात्स राजा तमृषिं चखाद तपसान्वितम्| SP0170012: रक्षसा स किमर्थं च हृतचेताभवन्नृपः|| १|| SP0170020: सनत्कुमार उवाच| SP0170021: वसिष्ठयाज्यो राजासीन्नाम्ना मित्रसहः प्रभुः| SP0170022: सुदासपुत्रो बलवानिन्द्रचन्द्रसमद्युतिः|| २|| SP0170031: तमागम्योचिवाञ्छक्तिश्चरिष्ये दीक्षितो व्रतम्| SP0170032: तत्र मे निशि राजेन्द्र सदैव पिशिताशनम्|| ३|| SP0170041: इहागतस्य यच्छस्व शुचि सर्वगुणान्वितम्| SP0170042: अप्रतीकारसंयुक्तमेकदैकान्त एव च|| ४|| SP0170051: एवमस्त्विति तेनोक्तो जगाम स महामनाः| SP0170052: अथास्यान्तर्हितं रक्षो नृपतेरभवत्तदा| SP0170053: नाज्ञापयत्तदा सूदं तस्यार्थे मुनिसत्तम|| ५|| SP0170061: गते ऽथ दिवसे तात संस्मृत्य प्रयतात्मवान्| SP0170062: सूदमाहूय चोवाच आर्तवत्स नराधिपः|| ६|| SP0170070: सौदास उवाच| SP0170071: मयामृतवसो प्रातर्गुरुपुत्रस्य धीमतः| SP0170072: पिशितं सम्प्रतिज्ञातं भोजनं निशि संस्कृतम्| SP0170073: तत्कुरुष्व तथा क्षिप्रं कालो नो नात्यगाद्यथा|| ७|| SP0170081: स एवमुक्तः प्रोवाच सूदो ऽमृतवसुस्तदा| SP0170082: राजंस्त्वया नो नाख्यातं प्रागेव नरपुंगव| SP0170083: साम्प्रतं नास्ति पिशितं स्तोकमप्यभिकाङ्क्षितम्|| ८|| SP0170091: पिशितस्यैव चाल्पत्वाद्बहूनां चैव तद्भुजाम्| SP0170092: अमितस्य प्रदानाच्च न किंचिदवशिष्यते|| ९|| SP0170100: राजोवाच| SP0170101: जाने सर्वोपयोगं च जाने चादुष्टतां तव| SP0170102: जाने स्तोकं च पिशितं कार्यं चेदं तथाविधम्| SP0170103: मृग्यतां पिशितं क्षिप्रं लब्धव्यं यत्र मन्यसे|| १०|| SP0170110: सनत्कुमार उवाच| SP0170111: एवमुक्तो ऽमृतवसुः प्रयत्नं महदास्थितः| SP0170112: पिशितं मृगयन्सम्यङ्नाप्यविन्दत कर्हिचित्|| ११|| SP0170121: यदा न लब्धवान्मांसं तदोवाच नराधिपम्| SP0170122: गत्वा निशि महाराजमिदं वचनमर्थवत्|| १२|| SP0170131: राजन्न पिशितं त्वस्ति पुरे ऽस्मिञ्छुचि कर्हिचित्| SP0170132: मृगयन्परिखिन्नो ऽस्मि शाधि किं करवाणि ते|| १३|| SP0170140: सनत्कुमार उवाच| SP0170141: स एवमुक्तः सूदेन तस्मिन्काले नराधिपः| SP0170142: नोवाच किंचित्तं सूदं तूष्णीमेव बभूव ह|| १४|| SP0170151: तदन्तरमभिप्रेक्ष्य विश्वामित्रसमीरितः| SP0170152: राक्षसो रुधिरो नाम संविवेश नराधिपम्|| १५|| SP0170161: रक्षसा स तदाविष्टो रुधिरेण दुरात्मना| SP0170162: उवाच सूदं शनकैः कर्णमूले महाद्युतिः|| १६|| SP0170171: गच्छ यत्किंचिदानीय मांसं मानुषमन्ततः| SP0170172: गार्दभं वाप्यथौष्ट्रं वा सर्वं संस्कर्तुमर्हसि|| १७|| SP0170181: किमसौ ज्ञास्यते रात्रौ त्वया भूयश्च संस्कृतम्| SP0170182: रसवद्गन्धवच्चैव क्षिप्रमेव समाचर|| १८|| SP0170190: सनत्कुमार उवाच| SP0170191: स एवमुक्तस्तेनाथ मानुषं मांसमाददे| SP0170192: राजापकारिणो व्यास मृतोत्सृष्टस्य कस्यचित्|| १९|| SP0170201: अथार्धरात्रसमये भास्कराकारवर्चसम्| SP0170202: शतानलसमप्रख्यमपश्यन्मुनिसत्तमम्|| २०|| SP0170211: स तमर्घ्येण पाद्येन आसनाग्र्यवरेण च| SP0170212: समर्चयित्वा विधिवदन्नमस्योपपादयत्|| २१|| SP0170221: स तदन्नं समानीतं समालभ्य महातपाः| SP0170222: चुकोप कुपितश्चाह पार्थिवं प्रदहन्निव|| २२|| SP0170230: शक्तिरुवाच| SP0170231: पार्थिवाधम विप्राणां भोजनं राक्षसोचितम्| SP0170232: न दीयते विधिज्ञेन त्वं तु मामवमन्यसे|| २३|| SP0170241: यस्मात्त्वं राक्षसमिदं मह्यं दित्ससि भोजनम्| SP0170242: तस्मात्त्वं कर्मणा तेन पुरुषादो भविष्यसि|| २४|| SP0170250: सनत्कुमार उवाच| SP0170251: एवमुक्तस्तु तेजस्वी राजा संचिन्त्य तत्तदा| SP0170252: उवाच क्रोधरक्ताक्षो राक्षसाविष्टचेतनः|| २५|| SP0170261: पुरुषादो भवेत्येवं मामवोचद्भवान्यतः| SP0170262: ततस्त्वां भक्षयिष्यामि भ्रातृभिः सहितं द्विज|| २६|| SP0170271: भक्षयित्वा विशुद्ध्यर्थं मुक्तशापस्ततः परम्| SP0170272: चरिष्यामि तपः शुद्धं संयम्येन्द्रियसंहतिम्| SP0170273: पित्रा तवाभ्यनुज्ञातः स्वर्गे वत्स्ये यथेप्सितम्|| २७|| SP0179999: इति स्कन्दपुराणे सप्तदशमो ऽध्यायः||